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नर ! जन्म सफल करले अपना

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )  नर ! जन्म सफल  करले अपना ॥ टेक ॥  काहेको दौरत विषयनके संग ?  यह है दो दिनका सपना || १ || धर गुरुभाव चरण पर ताके ।  मंत्र दिया वहिको जपना || २ ||  सत् महावाक्य सुनो गुरुहीसे ।  अनुभव के घरमें छपना || ३ || तुकड्यादास कहे सधवाले ।  जो कुछ होय तरो तपना  || ४ ||

काहेको भटक नर मरता है

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )  काहेको भटक नर मरता है ॥ टेक ॥  अपनी अपनी सब कोई रोवे ।  क्यों तोहे समझ  न परता है ?  || १ || जो जो गये रहे या जगमों ।  उनकी रहन निहरता है ।  || २ || बिन सत् संग न सूख कहीं भी ।  क्यों नहि यह  लख परता है ? || ३ || तुकड्यादास कहे भज हरिको ।  भवसागर तभि तरता है || ४ ||

यह सब जग धनका प्रेमी है

 ( तर्ज - दर्शन बिन जियरा तरसे ० )  यह सब जग धनका प्रेमी है ॥ टेक ॥  धनके खातिर प्राण तजेंगे ।  करेंगे चाहे हरामी है ॥ १ ॥  धनका मान बडा जगमाँही ।  बिन धन कोउ न कामी है ॥२ ॥ धनसे जोरू और सगाई ।  धनके मामा मामी है ।   || ३ || कोउ न पूँछे धन जाने पर ।  भूखे मरत निकामी है ।   || ४ || तुकड्यादास कहे एक ईश्वर ।  धन बिन देत अरामी है ..  || ५ ||

सद्गुरुनाथकी महिमा , न्यारी

 ( तर्ज - नैननमें बस जा गिरिधारी ० ) सद्गुरुनाथकी महिमा , न्यारी ॥टेक ॥  कौन कहे उनकी कथनीको ?  बेद कहत महिमा , सब हारी ॥१ ॥  ऋषि मुनि उनके शरणागत है ।  बिन गुरु - दया ,  नही कोउ तारी ॥२ ॥  करम धरमसे सुख नहि होवे ।  पूर्ण करत गुरु देकर तारी ॥३ ॥  तुकड्यादास कहे गुरु सुमरो ।  करत जगतमें वह बलिहारी ॥४ ॥

मेरो मन ध्यावत कृष्ण कन्हैया

 ( तर्ज - नैननमें बस जा गिरिधारी ० )  मेरो मन ध्यावत  कृष्ण कन्हैया ॥टेक ॥  गोवर्धनधर गोप गवैया ।  प्रतिपालक निज भक्त बलैया ॥ १ ॥  द्रुपद - सुताको चीर पुराये ।  पार करी गजहूकी नैया ॥२ ॥  भक्त सुदामा कंचनपुरि दे ।  तुलसीदल से तुले तुलैया ॥३ ॥  तुकड्यादास कहे वहि धन है ।  राखत ब्रिद , सुख देत सुनैया ॥४ ॥ 

भाई ! छोड तनुका गर्व ,

 ( वर्ज वारी जाऊँ रे साँवरियाँ ० )  भाई ! छोड तनुका गर्व ,  लीन हो नाम गा रे  || टेक || तू क्या जाने अमर है काया ?  किसने तुझको ग्यान सिखाया  माया का यह खेल ,  मेल नहि पायगा रे ॥१ ॥ जो नर इसका भेद पछाने ,  वहि ईश्वरके नामको जाने ।  और सभी दीवाने ,  जमघर जाय प्यारे ! ॥२ ॥  घडि पलका नहि जरा भरोसा ,  क्या जाने किस दमकी आसा ।  बिना हरीके नाम  काम नहि होयगा रे ॥३ ॥  गुरु - चरणोंमे लीन करो मन ,  यहाँ मनुजका आखिर है धन । तुकड्यादास कहे सुनसुनके  जान यह तारे ॥४ ॥ 

तेरी कौन कहावे महिमा

 ( वारी जाळी सवय ० )  तेरी कौन कहावे महिमा ,  नियमभी ना कहारे || टेक || शेष बिचारा कहते हारा ,  शास्त्र बजावत डंका हारा  बेद कहे ' नेती '  गुण तेरा वाहवा रे || १ ||  जोगी बनमें करे समाधी ,  तेरी महिमा उन्हें न साथी  व्याधि लगाके संग ,  रंग दे दीन बहारे ॥२ ॥  औरनकी क्या कथा कहाऊँ ,  माया - पार नहीं वह पाऊँ  मन बुद्धीके पार हरी !  रुप है तुम्हारे ॥३॥  जो सत् - संगत जाय बिचारे ,  वही तुम्हारा रूप निहारे  तुकड्यादास कहे ,  भजरे भज राम पियारे ॥४ ॥