( वर्ज वारी जाऊँ रे साँवरियाँ ० )
भाई ! छोड तनुका गर्व ,
लीन हो नाम गा रे || टेक ||
तू क्या जाने अमर है काया ?
किसने तुझको ग्यान सिखाया
माया का यह खेल ,
मेल नहि पायगा रे ॥१ ॥
जो नर इसका भेद पछाने ,
वहि ईश्वरके नामको जाने ।
और सभी दीवाने ,
जमघर जाय प्यारे ! ॥२ ॥
घडि पलका नहि जरा भरोसा ,
क्या जाने किस दमकी आसा ।
बिना हरीके नाम
काम नहि होयगा रे ॥३ ॥
गुरु - चरणोंमे लीन करो मन ,
यहाँ मनुजका आखिर है धन ।
तुकड्यादास कहे सुनसुनके
जान यह तारे ॥४ ॥
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