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भगवान तेरे ?

  भगवान तेरे ?   ( तर्ज : ओठों पे हँसी , पलकों में )   भगवान् मेरे ! नहीं दूर धरे ।  हरदमही नजर में रहते हैं ।।  पानी में है वो , खाने में है वो ।  गाने में भी गाना कहते हैं ! ॥ टेक ॥  हर चीज उसकी है सूरत ।  मन्दर में भि उसकी है मूरत ।।  फूलोंमें भी है , सूलोंमें भी है ।  हरदम ही नजर में रहते हैं ! ॥ १ ॥  यह कौन कहे , उसमें न प्रभू ।  सब छान लिया , दिल ठान लिया ॥  हर स्वाँस में है , पलकों में रहे ।  हरदम ही नजर में रहते हैं ! ॥२ ॥  भगवान भजे , भगवान मिले ।  शैतान भजे , शैतान मिले ॥  दोनों की समझका भेद यहाँ ।  हरदम ही नजर में रहते हैं ! ॥३ ॥  हमसे न जुदा कर सकते कोई ।  जैसी न सुगंध औ ' फूल अलग ।।  तुकड्या ये कहे , दिल मस्त रहे ।  हरदम ही नजर में रहते हैं ! ।।४ ।।  मालेगाँव ; दि . ७ - ९ -६२

भारत से लडनेवाले हो ?

  भारत से लडनेवाले हो ?  ( तर्ज : तेरी प्यारी - प्यारी सूरत पर ... ) भारतसे लडनेवाले हो ?  ईश्वर से जरा तो डरो । सुनलो !!  तुम अपनी नीती - अक्कलको ,  अब तो भी जरा सुधरो ।  अरे ! सुनलो !! || टेक || क्यों संसार दुखात हो ?  शाँति भंग करवाते हो ?  मेरे देशको क्रोध चढाकर ,  अपना नाश कराते हों ! || १ || अपना - अपना ले खाते ,  खुशी - खुशी में जी जाते ।  क्योंकर किसपर हमला लाकर ,  विश्व अशान्ति कराते हो ?? ॥२ ॥  मत समझो भारत दुर्बल ,  उसमें हैं अर्जुन - से मल्ल ।  शिव , राणा , हनुमान हैं उसमें ,  अष्ट भुजा दुर्गाका बल ! ॥३ ॥  झाँसीवाली मरी नहीं ,  भगतसिंग कहिं दूर नहीं ।  गुरुगोविन्द - सुभाष हैं बैठे ,  उनकी क्रांति डरी नहीं ! ।। ४ ।।  बडे - बडे हैं वीर यहाँ ,  राम - कृष्ण - नल - नील यहाँ !  शांति गांधि - से छिपे हुए है ,  बांध रखे जंजीर यहाँ ! ॥५ ॥  जानो बुद्ध यहाँ ही हैं ,  उनका सिरपर छत्र रहे ।  कहता तुकड्या , इसी कारण से ,  भारत यह आबाद रहे ! ॥६ ॥ ...

मुझमें नहीं अधिकार !

  मुझमें नहीं अधिकार !  ( तर्ज : गुरु कृपा का अंजन पाया ... .. )  मुझमें नहीं अधिकार बडा ,  यह मेरा मैं जानूं  काम - क्रोधसे हूँ जकडा ,  यह मेरा मैं जानूं !! || टेक || दुनिया चाहे सन्त कहे ,  पर मैं तो दासके पात्र नही आलसी हूँ , आराम चहूँ ,  मुझमें सेवाके गात्र नहीं  स्तुती करे तो हर्षता हूँ ,  गाली से मै नम्र नहीं ।  समय देखकर बकता हूँ मैं ,  मुझे जरा भी सब्र नहीं ।  धन मिलने पर रहूँ खडा ,  यह मेरा मैं जानूं  काम क्रोधसे हूँ जकडा ,  यह मेरा मैं जानूं !! || १ || साधू भेख बना तो क्या है ?  साधूके गुण ना मुझमे  बडा दूर है , साधूका घर ,  कैसे पावे हम उसमे मुझमें  किसका भला किया नहीं हमने ,  किसको नहिं प्यारा माना  मतलब करने दौड़ा घर - घर  मतलबसे जन पहिचाना  आज भी तो हूँ यही खडा ,  यह मेरा मैं जानू  काम - क्रोधसे हूँ जकडा ,  यह मेरा मैं जानूं !! || २ || सच्ची क्रांतीकी ज्वाला में ,  मैंने कदम नहीं डाला दूर - दूरसे किया वाहवा ,  जपी नहीं उसकी माला क...

गुरु - किरपा नहीं पडी सडकपर

  गुरु - किरपा नहीं पडी सडकपर ,  मेरा मैं जानू !  बीज न बोये जाते खडकपर ,  मेरा मैं जानूं !! ॥ टेक ॥  जबतक निर्मल चित्त न होता ,  गुरु - उपदेश नहीं फलता ।  निर्मल चित्त होनेको चाहिये ,  शुद्ध - चरित्र औ भाउकता ।  भाउकताको श्रवण - भक्तिका ,  संच चाहिये , कानोंमें ॥  श्रवण - भक्तिमें तारतम्य हो ,  चूक सके मत वाणीमें ।  स्थिर ना रहता दिल धडकन पर ,  मेरा मैं जानूं !  बीज न बोये जाते खडकपर ,  मेरा मैं जानूं !! ॥ १ ॥  जहाँ - वहाँ गुरु - किरपा चाहिये ,  बात बातमें जन गावे ।  मगर क्या धन - दौलत देनेसे ,  गुरु - किरपा घरमें आवे ??  बड़ी हैं उसकी कीमत बाबा !  बजारमें नहिं मिल पावे ।  जनम - जनमकी पूंजी लगती ,  सत् - संगत तब मिल जावे ।।  नहीं मिलती वह क्रोध भडककर ,  मेरा मैं जानूं ।  बीज न बोये जाते खडकपर ,  मेरा मैं जानूं !!  || २ || हाथ जोड़ और पैर पड़नसे ,  मिले वो सस्ता काम नहीं ।  उसको चाहिये आज्ञापालन ,  उसके बिन आराम नहीं ।।  जि...

छल न कर

  छल न कर   ( तर्ज : हम भी है तुम भी हो ... )  छल न कर , बल न कर ।  तेरी खलबल से तूही सुधर ! ॥ टेक ॥ किसकी जवानी वो धुलमें मिलावे ।  किसकी जवानी से आजादी पावे ॥  आबादी लावे ।  चल उछल , अन न ढल ॥  तेरे भारत की करले फिकर ! ॥१।।  सुन्दर तेरा देश सबसे भरा  ' मोती जवाहर ' है , इसमें हिरा ॥  करके होता पुरा ।  दे नजर , ख्याल कर  हो जो दुश्मन भी करले जिगर ! ॥२ ॥  किसकी है शक्ति तुझे तोड़ दे ।  तेरा संगठन ही दुही जोड दे ॥  रही साथ ले  याद कर , ध्यान कर ॥  सारे घर - घर की बदला नजर ! ॥३ ॥  दुही के पडदे जहाँ है बँधे ।  जल जाके प्रीतीसे तू फाड़ दे ।।  दिल न कर दे जुदे ।  बढ़ के चल , लड के चल ।  दास तुकड्याकी  सुन ले खबर ।।४ ।।  रेल्वे प्रवास , अमलनेर ;  १३ - ९ -६२

गुरु किरपा का अर्थ यही है ,

  गुरु किरपा का अर्थ यही है ,  मेरा मैं जानूं !  लगी - प्रभूसे लगन सही है ,  मेरा मैं जानूं !! ॥ टेक ॥  दिलमें जिसके त्याग भरा है ,  जरा न भाँता छलबल है ।  जीवन है संयमी हमेशा ,  अन्दर बाहर निर्मल है । जो आवे उसके सँग प्रीति ,  अपनी आत्मा समझाने ।  सद् विचार लेना और देना ,  सदा नम्रता पहिचाने ॥  द्रोह- दुश्मनी दूर गयी है ,  मेरा मैं जानू  लगी प्रभूसे लगन सही है ,  मेरा मैं जानूं !! || १ || सत् - संगत की निशा हमेशा ,  प्रभू - नाम की मस्ती है सत्चित् आनंद रूप समझकर ,  बढे जिन्होंकी किस्ती है  सुख - दुख दोनों में है समता ,  राज मिले या धुली मिले  सबका भला हमेशा हो ,  यह बात सदा मुंहसे निकले  अपना- परका भेंद नहीं है ,  मेरा मैं जानू ।  लगी प्रभूसे लगन सही है ,  मेरा मैं जानूं !! || २ ||  यह संसार लिला राघव की ,  समझ के खेला करते हैं   यहाँ वहाँ क्या सभी विश्व में  कर संचार बिचरते हैं ।  जरा न डर है जनम - मरनका ,  सत्गुरु नामसे तरते ह...

भक्ति का प्यारा

  भक्ति का प्यारा   ( तर्ज : झिंजोटी ; ताल : : तिनताल ... )  भक्ती का प्यारा भगवान !  भक्ति से ही तारता है जान ! ॥ टेक ॥ बिन प्रीती भक्ति है सुनी !  भक्ति बिना परचीत न होनी !!  तरने को भव है महान् ।।१ ।।  जप तप योग यज्ञ सब कीन्हे ।  शास्त्र पुराण पढे , पढ लीन्हे ॥  होती ना प्रभु पहिचान ! || २ ||  भक्ती की महिमा अति प्यारी !  भक्तोंने गायी बलिहारी !!  कहते हैं , सब ही सुजान ! ।।३ ।।  जो चित - मनसे प्रभु गुण गावे ।  जनम - जनम धोखा नहिं पावे ॥  तुकड्या ने पाया बरदान ।।४ ।।  गुरुकुंज : दि . ३०-८-६२ 

चल चल जवान !

  चल चल जवान !  ( तर्ज : तुझी प्रीत उघड करू कैसी )  चल - चल जवान सब छोड शान !  यह कौन द्वार आया तुफान ??  करने को सब नष्ट मान ! || टेक || तू अपना नहीं देश पछाने ।  तब कैसी जायेगी जान ?? || १ ||  जिन बीरोंने खून दिया था ।  उसका कुछ रखले गुमान ! ॥ २ ॥  आजादी यह भूषण तेरा ।  गुम जाये पशु- तूल्य प्राण ! || ३ || आँख उठाकर देख जरा तो ।  सरपर नाच रहा विज्ञान ! ॥४ ॥  तुकड्यादास वीर बन बोले  हम भारत माँ की संतान ! ॥५ ॥  गुरुकुंज , दि . ३०.८. ६२ 

तोरि प्रीत लगी

  तोरि प्रीत लगी   ( तर्ज : तुझी प्रीत उघड करू कैसी  )  तोरि प्रीत लगी फिर नीत कहाँ ?  तब रीत - भात अरू जात कहाँ ??  यही तो है मोरि जीत यहाँ ! ॥ टेक ॥  कहाँ कुबजाने जप - तप कीन्हो ।  रघुबरने आकर मन चिन्हो ॥  देखा नहीं प्रभू भेद तहाँ ! ॥१॥  झूठे बेर खात भिल्लन के ।  क्यों नहिं जाती देखे उसके ? ?  भगतन के बीच मस्त रहा ! ॥२ ॥  कब गजने योगादिक साधे ?  प्रभू धाये तब भागे - भागे ॥  द्रौपदि का नहिं दुख सहा ! ॥३ ॥ केवट ब्रह्म भोज कब दीन्हे ?  वेश्या गणिका क्या गुण चिन्हे ??  तुकड्या कहे , यही रंग रहा ! ।। ४ ।।  गुरुकुंज : दि . ३०. ८. ६२ 

मोरी नैन देखकर

  मोरी नैन देखकर   ( राग : खमाज ; ताल : तिनताल ... )  मोरी नैन देखकर चमकी शाम !  मोहे अचरज है , यह कौन नाम !!  यह नील कमलसम  रंग आम ! ॥ टेक ॥  अधर लाल जैसी गुलाब है ।  कर बन्सीकी मधुर तान ! ॥१ ॥ कानन कुंडल डोलत सुरसे ।  मोर मुकुट अति देत प्रेम || २ ||  चरण -कमल तारे चमके ।  देखत भुले कोटी काम !  || ३ || लपट - झपट पीताम्बर लपटे लहरावत जमुना सुदाम   || ४ || तुकड्यादास दरस भयो जबसे ।  जनम जनम पाये अराम ! ॥ ५ ॥ 

मैं असुवन से

  मैं असुवन से  ( तर्ज : तुझी प्रीत उघड करू ) मैं असुंवन से दिल धोऊँ आज !  धरूँ ध्यान , गान - शृंगार - साज ॥  करूँ निर्मल  भक्ति की आवाज ! ॥ टेक ॥  सब विषयन की राख बनाभूं ।  समझाऊँ मनको रिवाज ! ॥१ ॥  मन मानस तन्मय पद पाऊँ ।  लीन करूँ सब काम - काज ! ॥२ ॥  ' मैं ' ' तू ' भेद अभेद बनायूँ ।  सुन - सुनकर  अनहद की बाज ! ॥ ३ ॥  सत्‌गुरुदेव से मारग पाऊँ ।  यह आतम का विश्व - राज ! ॥४ ॥  तुकड्यादास जनम नहिं आऊँ ।  निश्चय है , नहीं है अंदाज ! ॥५ ॥ 

गाना है ! गाना है !!

  गाना है ! गाना है !!  ( राग : भूपाली कोरस प्रकार )  गाना है , गाना है ,  गाना है , भारत !  उसकी धून मचाना है ,  जिसका पहिने बाना है ! ॥ टेक ॥  घरघरमें या मंदिर में ,  जंगल में बाजारों में ।  उन शब्दों के नारों में  भारत हमारा बाना है ।  उसकी टेक निभाना है ! ॥१।।  सजके - धजके गायेंगे ,  देश का बिगुल बजायेंगे ।  आजादी की नौबदपर ही ,  अपना गर्व मनायेंगे ॥  यही हमारा बाना है ! ॥ २ ॥  कौन हैं इसके शत्रू वो ,  हम उनसे लड जायेंगे ।  दिल उनके बदलायेंगे ,  उनको मित्र बनायेंगे ।  हमें न किसका खाना हैं ! ॥ ३ ॥  अपना देश सभी को है ,  इनसानीयत सीखो ये ।  कहता तुकड्या अपने दिलमें ,  बच्चा - बच्चा लिखो ये ।।  चुके नहीं निशाना है ! ॥ ४ ।।  गुरुकुंज : दि . ३०-८-६२

आते हैं , आते हैं !

  आते हैं , आते हैं !  ( तर्ज भूपाली कोरस प्रकार )  आते हैं , आते हैं ,  आते हैं , कौन ?  कैसे आते देखेंगे हम ,  सुनते हमे सताते है ! || टेक || देश हमारा है भारत ,  आजादी इसकी  सूरत बच्चा - बच्चा खडा हुआ  अब कैसी नजर उठाते है कदम मिलाकर गाते है !   || १ || बाल तिलकने यत्न किया ,  गांधीजीने मंत्र दिया सुभाष तो लढवैया बनकर  इसके खातिर प्राण दिया हम कैसे भूल जाते हैं ?   || २ || वह झांसी की रानी थी ,  जगजाहीर मर्दानी थी  उसकी जो कुर्वानी थी ,  भारत पर वह बानी थी ।  क्या हम नाम मिटाते हैं ? || ३ || आना हो तो आजाओ ,  लेकिन सोच - समझ आओ ।  वापस ही जाना है तुमको ,  नाहक गर्व गमा जाओ ।  शहीद सब खो जाते हैं ! ॥ ४ ॥  देश हमारा प्यारा है ,  इतना ही तो सितारा है ।  सबके लिये उजारा ,  ऐसा तुकड्याका निर्धारा है ।  फिर क्यों गलती खाते हैं ? ॥ ५ ॥  गुरुकुंज ; दि . ३०-८-६२ 

प्यारे तू दिल को टटोल

  प्यारे तू दिल को टटोल !  तेरे बिच कौन है चेतन ,  बोल ?? ॥ टेक ॥ जड़ - चेतन की  संगम धारा ।  इससे ही तू सुन्दर प्यारा ॥  दिखता है सबको अमोल  ! ॥१ ।।  चेतन जब उड जावे जडसे ।  तब मुरदा कहलावे भड्‌से ।।  जाता है जलने को , डोल ! ॥२ ॥  चेतन ही चेतन रह जावे ।  तब दुनिया की मौज न पावे ॥  खाली घूमेगा खगोल !॥३ ॥  माया ब्रह्म इसे कहते हैं ।  मिल - जुलके जग में रहते हैं ।  तुकड्याने तोला हैं , तोल !  

जाओ जाओ

  जाओ जाओ !  ( तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल ... )  जाओ जाओ , ना सताओ ,  ध्यान छूट गयो है ।  मोरी दिलकी लगन मगन थी ,  जो टूट गयो है ॥ टेक ॥  माधव की पूनममें ,  बैठा था कुंजन में ।  विषय - भाव क्यों मनमें ??  साक्षी ने पछान लियो ,  फूट भयो है ! जाओ .. ।। १ ।।  कितने बार रोक लियो ,  मैं न चाहूँ कहीको गयो ।  समझाकर समझ दियो ।  फिरभी बावलो न माने  लूट गयो है ! ॥ २ ॥  दुर्बल - सा देख मोहे ,  ग्रासे षड्रिपु सब ये ।  अबतो समय भी न रहे ।।   आसको उदास करने  ऊँठ गयो है ॥ जाओ ... ।। ३ ।।  सत्‌गुरु की शरण जाऊँ ,  हाल सब सुनाय आऊँ ।  तबही बरद् - हस्त पाऊँ ।  कहे तुकड्या बल उनके  झूठ भयो है ॥ जाओ .. ॥४ ।। 

अनुभव बिन धीर न आवे

 ( तर्ज : अपना सुन्दर देश बनाये ... )  अनुभव बिन धीर न आवे ,  चाहे कोई समझावे ||टेक|| पिता कहे लडकोंसे - बचना ,  झूठ बात मत करना ।  जबतक ठोकर मिले न उसको ,  बेटा हँसी उडावे ||१ || काला काम करो मत कोई ,  सत्ता ढोल बजावे ।  जबतक जेल - फाँसी नहिं होती ,  कोई नहीं सुन पावे ||२|| मिथ्या है संसार सरासर ,  भले निगामें आवे ।  मौत घाट उतरे नहिं काया ,  नाहक मुंडा हलावे ||३|| तुकड्यादास कहे हो जिसका ,  उसके सँगही जावे ।  सतगुण बात बताते फिरभी ,  जल्दि समझ नहिं पावे ||४|| बिरला - मंन्दिर ,  दिल्ली , दि . २६. ३. ६२

मोरी लाज -

  मोरी लाज -   ( तर्ज : मोहे पनघटपे नन्दलाल ... )  मोरी लाज आज  साँवरियों राख लिजोरे ।  मोहे भक्ति - प्रेम दान औ ,  ईमान दिजोरे ! ॥ टेक ॥  भूला हूँ माया में ,  मानव की काया में ।  विषयों की छाया में ॥  अब न चाहँ बहिरन के  सँग रिझोरे ! ।।१ ।। क्रोध के मदसे तंग  भयो आफत से ,  काम गयो हिम्मत से ||  तंग भयो आफत से काम-क्रोध  के मदसे हार गयो हिम्मत से आज समझ - बूझ  कही निभाव किजो रे !  चरणन में भक्ति होय ,  आँखिया तुम प्रेम रोय  और नही चाहू कोय सुमरन हर स्वॉस चले ,  दास किजो रे ! || ३ || तुकड्याने ठान लिया ,  निश्चय जिव - दान दिया ।  अब न हटूं प्राण गया ॥  कृष्णचन्द्र मुरलीधर  उर बजोरे || ४ || पिंपलगाँव , ( आंध्र . )  दि . ८ .९. ६२

मोरी जात ना ! ..

  मोरी जात ना ! ..  ( तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल )  मोरी जात ना ,  विद्या लो नाथ आओ पधारो ।  में केवट हूँ नदियोंके रहत सहारो भाग बडे आज मोरे रघुवरने नांव धिरे सिता सँग बास करे लछुमन भी बंधू साथ ,  दर्श निहारो ॥ मोरी .. ॥१ ॥  चरण धोये साफ करूँ ,  तब कहीं नावोंमें धरूँ  पूजन भली भाँति करूँ ॥  गंगा के पार करत साँज सँवारो ॥  मोरी ...||२||  मैं गंगा पार करूँ ,  धन में ना चित्त धरूँ ।  बदली में एक स्मरूँ ।। नी ॥  तुम्हरे घाट आऊँ नाथ ,  तो मोहे भी तारो ॥  मोरी ... ॥३ ॥  गंगा घाट मेरो है ,  भवसागर तेरो है ।  बात ये उधरो है ॥  तुकड्यादास कहत , राम !  बरद दे डारो ।  मोरी ... ।।४ ।।  पिंपलगाँव , ( आंध्र . ) ;  २८ - ९ -६२ 

मोरे मन

  मोरे मन   ( तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल ... )  मोरे मन तुम्हीं के  चरण लाग रखोजी ॥  तबही कठिन संकट में  जाय सकोजी || टेक || पलपल ही भटकत है ,  दंभ - मोह चटकत है ।  विषय - संग अटकत है ।  इसी कारण बोलत हूँ ,  अब नं दुखोजी ।। मोरे ..।।   निश्चय नहीं दे टिकात ,  ऊठ - ऊठ दौर जात ।  पर जन - मन दुखात ॥  कितनी बार रोक फिर भी  विषय चखोजी ॥ मोरे .. ||२|| अपनों के घर न परे ,  पर - घर को जाय मरे ।  सुधराय नहीं सुधरे ॥  तुकड्या कहे , सत्गुरुबिन ,  कौन जगोजी ? ॥ मोरे ...|| ३|| पिंपलगांव , ( आंध्र . )  दि . १२. ९. ६२

मोहे अति आनंद

  मोहे अति आनंद   ( तर्ज : मोहे पनघटपे नन्दलाल ... )  मोहे अति आनन्द ,  सन्त छन्द लाग गयो रे !  मेरे जनम - जनम  दुख सभी भाग गयो रे ॥ टेक ॥ फिकर गयी विषयनकी ,  भ्रान्ति गयी सब मनकी लाज नहीं तन जन की ।  सोयी थी मन्द वृत्ती ,  जाग गयो रे ! ॥ मोहे ... ||१|| चलत प्रेम , बसत प्रेम ,  सोवत जागत ही प्रेम  हृदय मिलत झुलत प्रेम |  प्रेम नहीं जायें ,  मन त्याग गयो रे ! ॥ मोहे ...||२||  जनम् - मरन समान ,  जिसको है ब्रह्मज्ञान ।  फिर छूये क्यों तुफान ??  तुकड्याकी नजर ,  भेद गयो रे ! ॥ मोहे ...||३||  पिंपलगांव ; ( आंध्र . )  दि . २८. ९. ६२