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भक्ती सुधा लेबलसह पोस्ट दाखवत आहे

ऐसो ग्यान हुआ बिन कामी

 ( तर्ज आया हूं दरबार तुम्हारे . )  ऐसो ग्यान हुआ बिन कामी ॥ टेक ॥  अँखियनसे देखा परदारा ।  परधन पीछे हाथ हमारा ।  यह नहीं ग्यान है ,  बात हरामी ॥ ऐसो . ॥ १ ॥  पाँव चले करनेको चोरी ।  कान सुने निन्दा बलजोरी ।  यह तो मनकी ,  नमक गुलामी ॥ऐसो ॥ २ ॥  मुंह तो गाली बके तज नीती ।  नाक सुंघे विषयनकी प्रीती  यह सब राह ,  नर्क की गामी ॥ ऐसो . ॥ ३ ॥  ग्यान वही सत्संगत पावे ,  आतम रूप नजरमें आवे ।  तुकडया कहे ,  मन हो प्रभु नामी ॥ ४ ॥ 

मानव भजनशील है प्राणी

 ( तर्ज राम भजन अति प्यारा . )  मानव भजनशील है प्राणी ।  धर्म गुणखाणी ॥ मानव .... ॥टेक ॥  पर नहीं ग्यान - स्थानको जाने ,  करके हुआ अभिमानी ।  किसका भजन गया विषयोंमें ,  पाया दुख - हैरानी ॥१ ॥  किसने भजन किया है धनका ,  लगी पिछू शैतानी ।  किसको भजन लगा सत्ता का ,  लगी द्वेष की बानी ॥२ ॥  किसने भजन किया मंदर में ,  हुआ पंथ का प्रेमी ।  जैसा अंधा भागे पथसे ,  भटके अनघड गामी ॥३ ॥  तुकडयादास ग्यान निजरूपका ,  वोही भजन निर्वाणी ।  और भजन है जनमका द्वारा ,  प्रभू नाम सत्वाणी ॥ ४ ॥ 

स्टालीन को श्रद्धांजलि

स्टालीन को श्रद्धांजलि  समता की रोशनी का ,  एक दिव्य उजारा था ।  नवनिर्मिती के बलका  युवकोंका सहारा था ॥  एक उच्च जगत की वह  दृष्टीका सितारा था ।  चाहे कोई हो प्यारे ,  पर तू भी नजारा था ।  छोटेसे फुलसे बढकर ,  इतनाभी ऊँच उठना  आसान नहीं इबको ,  उतनी मजलपे चढना ||  टकराये पर्वतोंसे ,  फिरभी पीछे न हटना ।  बहादूर था तू तो स्टालिन !  पलमें हुआ है सपना ||  श्रीराम कृष्ण जिसके  कारण से लड़े खेले  शिवराय , महाराणा , जिसके  बचपन पे तोले ॥  जनता की आह पर तो ,  तूने भी बोल बोले ।  दुनिया की कदर करने ,  दुनियाकी आँख खोले ॥  अपने लिये जो करता ,  तो शत्रु कहा जाता |  सबके लिये किया है  करके भला कहाता ॥  जो कुछ भी शक्ति थी  सब इन्सानको बहाता ।  जितना दिया है तूने ,  बिरलाही कोई देता ||  ऐ साथियों ! न डरना ,  फाटक तो जा खुले है ।  सोचो वहीं चलो तुम ,  जिस राहपर चले है ॥  जहाँतक के हो सकेगा ,  तो शान्ति लो भले है ...

बडी कठिन थी स्वराज मंजिल

 ( तर्ज - छंद )  बडी कठिन थी स्वराज मंजिल ,  चढ़ बैठे भारतवासी ।  गये फिरंगी छोडके सत्ता ,  अब हालत आगे कैसी ॥ टेक ॥  प्रजातंत्र यह देश हमारा ,  पक्षतंत्र धुमधाम करे ।  उसीके मारे मचा शोर यह ,  सरगर्मी क्या काम करे ॥  किसका कहना मानके चलना ,  आपसमें बदनाम करे ।  देहातों में जाय न कोई ,  बातों से हैरान करे ।।  ऐसे कहते कई साल यह ,  बीत गये तंगो सोसी ।  आगे तो आराम मिले ,  हम रखते अभिलाषा ऐसी ॥  गये ० ॥१ ॥  बडी मुसीबत थी भारत पर ,  ' पाक ' ने दिल हैरान किया ।  अभी न शांति मिली ,  लगा दम झंझटका ही काम किया ||  निसर्ग ने रंग फैला करके ,  हमपर रोडा डाल दिया ।  कहीं तो फसले बहा दिया  कहि पानी बिन दुष्काल किया ||  अनाज के बटवारे में भी ,  भई गलतियाँ हैं खासी ।  किसान के दिल चमक गये ,  कहे स्वराज है कि है फाँसी ॥ २ ॥ देशभक्त को घेर लिया है  माया मोह प्रलोभन ने ।  क्या करते गरिबों की सेवा ,  सब घर भर लीये उसने ॥  मुखे थे जब नही थ...

देशके प्यारे वीर शहीदो

  ( तर्ज - छंद ) देशके प्यारे वीर शहीदो !  तुमको करूं प्रणाम ।  तुम्हरे ही कुर्बानी से  यह उजला देश तमाम || टेक || शत्रूने तो नीति छोडकर ,  हमपर मारा वार ।  तुम्हरी कुर्बानी से अबके ,  शत्रू बने नादार || १ ||  याद रहेगी पाकिस्तानको ,  हम कैसे है वीर |  मर मिटनेको जरा न डरते ,  भारत के रणधीर || २ ||  धन्य तुम्हारी माता जिसने ,  तुमको जन्म दिलाये ।  देशके खातिर बलि वेदीपर ,  तुमको दिया चढाये || ३ ||  जुग जुग जीये कीर्ति तुम्हारी ,  भारत के भंडार ।  रंग चढाया इतिहासको ,  पढले लाखों बार || ४ ||  जाति - पातिका , धर्म - पक्ष का ,  नहीं बनाया भेद ।  भारत माँ के पुत्र समझकर ,  किया शत्रुको छेद || ५ ||  तुम्हरे जैसे लाखों है  यह देश पुकारे आज ।  आगे भी इस भारत माँ की ,  सदा बचेगी लाज ॥६ ॥  तनसे , मनसे , धनसे , सारा ,  देश हुआ हुशियार ।   तुम्हरे पीछे कोट - कोट ये ,  बीर खड़े तैय्यार ॥७ ॥  क्या मजाल है भारत में कोई  घस जावेगा काल...

दिया खुशीसे जान प्राण

 ( तर्ज - छंद )  दिया खुशीसे जान प्राण  है संकट में उतरा ।  नैय्या पडी मँझधार - उतरा  चारों ओर खतरा ॥धृ ० ॥  माल पडा है जगाजगापर ,  पर खाने को रोना ।  जहाँ वहाँ इंतजाम बाँका ,  पर होती है दैना ॥  समझ नहीं आता है ,  ईश्वर भी क्यों देख रहा है ।  पाप हमारा बढा हुआ है ,  क्यों नहीं यह कहता है ।  कौन इसे समझायें  दुनियावालों नेक रहो ना ।  ईश्वर के घरमें तो होता ,  ईमान का ही पाना ॥  या तो सत्ता ऊठ चले ,  अब - बचा बचाकर पथरा ।  नैय्या पडी मँझधार - उतरा  चारों ओर खतरा ॥ १ ॥  नहीं रहा इन्सान कहीं ,  जो ऊठ अवाज उठा दे ।  जो मिलता वह जेबही काटे ,  भले हो सीधे सादे ॥  घर - घर में हो भ्रम फैला है ,  नहीं विश्वास भी अपना ।  कैसा काम चलेगा- यह तो ,  दिख पडता है सपना ||  धर्म गया और कर्म गया  हसता रस्तेका चतरा ।  नैया पडी मँशधार - उतरा  चारों ओर खतरा ॥ २ ॥ निसर्ग भी कुछ देख रहा है ,  कितना पानी इसमें  पानी बिन जिन्दगानी कैसी ,...

आसामी भाई के खातिर

 ( तर्ज - हरिका नाम सुमर नर ० )  आसामी भाई के खातिर ,  धीर दिलाने आये हम ।  हिंमत मत छोडो संकटमें ,  विजय इसीमें पाये हम || टेक || शत्रूने हमला ला करके ,  जगमे खुद बदनामि किया ।  बुरा नतीजा होगा इसका ,  उसको कर दिखलाये हम ॥ १ ॥  बच्चा - बच्चा साथ तुम्हारे ,  लडनेको इस दुष्मनसे ।  कायर बनके नहीं रहेंगे ,  या तो सब कट जायें हम ॥ २ ॥ जिस भारतने ज्ञान दिया ,  वह रहन - सहन इन्सानीका |  उसीपर गोलीबार चलाना ,  नीति तुम्हारी पाये हम ॥ ३ ॥  आसामी , बंगाली , हिमालय  नहीं छोड़ेंगे- याद रखो ।  तुकड्यादास कहे , अब लडलो ,  गरज - गरज बतलाये हम ॥ ४ ॥ 

धर्मराज नेपाल ! यहाँ है

  ( तर्ज - सच्चे सेवक बनेंगे जब )  धर्मराज नेपाल ! यहाँ है ,  पशुपति ईश्वर का बासा |  वीर लोग सत्य के पुजारी ,  सु - विनय प्यारा गुण ऐसा || टेक || जिधर उधर सौंदर्य सृष्टि का ,  पर्वत का है परकोटा ।  हर मन्दर में बजती भेरी ,  मंगल गूंज उठे घण्टा ॥  राजाओं की परम्परा ,  सेवा का भावुक स्थान यहाँ ।  खाना - पीना सहज सरल है ,  खेती भी उपजाऊ यहाँ ॥ '  राजा महेंद्र प्रताप ' यहाँ के ,  श्रद्धा जिनकी साधू पर ।  स्वतंत्रता है सब बातों की ,  ना उनको शत्रु का डर ॥  हिंदूओं की अमर ज्योति का ,  प्रकाश है फैला खासा ।  वीर लोग सत्य के पुजारी , ॥ १ ॥ नेपालहि की कपिल वस्तु में ,  हुये बुद्ध भगवान सुना ।  गोरखनाथ का भारी आसन ,  पशुपति के सन्निध बना ॥  भारत का हर सन्त यहाँ पर ,  दर्शन करने आता है ।  एकमुखी रुद्राक्ष,शंख उजला  देखे सुख पाता है भारत का संबंध यहाँ पर ,  सदियों से भी चलता है ।  आना - जाना सदा रहा है ,  आज भी फलता - फुलता है ॥  यही मारकर भौमासुर को...

बेधर्मी और गंदे जनसे

 ( तर्ज - हरिका नाम सुमर नर प्यारे ० )   बेधर्मी और गंदे जनसे ,  काम पडा है लडने का ।  जिसने भाई - भाई कहकर ,  भारतपर लादा धोखा ॥टेक ॥  भारतसे ही ज्ञान सिखा  और गुरुके सिरपर वार किया ।  सहा न जायेगा भारत को ,  गुलाम बनना दुसरों का ॥ १ ॥  भारत के आजादी की हम ,  पूरी कीमत चुका गये ।  जो कोई हकको बतलायेगा ,  बदला लेंगे हम उनका ॥ २ ॥  भारत की सारी जनता और  पंथ - पक्ष सब एक हुए ।  हिम - गिरिसे साधू - जन निकले ,  मुकाबला करने ' चीन ' का ॥ ३ ॥  शूर लडेगा हथियारों से ,  किसान नाज उगायेगा |  साधू जागृत कर जनता को  दूर करेगा यह धोखा ॥ ४ ॥  तुकडयादास कहे हम आये ,  बिहार और आसाम भूमि ।  जन - जन में खूब जोश बढाकर ,  नाश करेंगे शत्रू का ॥ ५ ॥ 

चाहिए प्रेम ही, फिर तो किसकी कमी

 ( तर्ज - श्याम सुंदरकी मीठी लगी )  चाहिए प्रेम ही, फिर तो किसकी कमी  दिखती दो किसका नाम ,  हम भी लेते हमी || टेक || दिखती जिसके बदनपर प्रभूकी छटा बांके दर्शनसे जाता है पातक हटा मै तो यह ना कहूँ बात  है लाजबी ॥ १ ॥ सदा संत संगतसे न्हाया कोई ।  उसके जीवनको कबहूँ भी धोखा नहीं ।।  मै तो दिलसे कहूँ ,  नम्र है आदमी ॥ २ ॥  ऐ मेरे प्रेमीयों प्रेम तो सीखलो ।  मजा क्या है इसीमें , जरा देख लो ॥  दास तुकड्याने पाया  निशाना यही ॥ ३ ॥ 

अपने आतम के चिंतन में

  ( तर्ज - उठा गडया अरुणोदय झाला ० )  अपने आतम के चिंतन में ,  हरदम जागृत रहना है ।  ओहं सोहं श्वास से अपनी  अंतरदृष्टी निरखना है || टेक || चंचल मनको बुद्धि विचारक ,  शुद्धी सततही करना है ।  निश्चल कर वृत्ती की धारा ,  अंतरमुख से स्थिरना है ॥ १ ॥  सहज समाधी चलते हलते ,  सब कामों में रखना है ।  विश्वरुप विश्वात्मक दृष्टी ,  अनासक्ति से चखना है ॥ २ ॥  सुखदुःख दोनों जीवधर्मं है ,  इनसे निवृत्त होना है ।  सदा आत्म - आनंद की मस्ती ,  पलपल में अनुभवना है ॥ ३ ॥  संत मिले सतसंग लाभकर ,  ग्यान ध्यान में रमना है ।  कर्मफलों का त्याग निहित कर ,  शांतीस्थान में जमना है ॥ ४ ॥  यह मानव - जीवन में इतनी ,  मंजिल चढ़कर जाना है ।  तुकडचादास कहे यह बानी ,  रोज - रोज ही गाना है ॥ ५ ॥ 

लाखो गरीब बैठे है दरबार तुम्हारे

  ( तर्ज - साबरमती के सन्त तुने ० )  लाखो गरीब बैठे है दरबार तुम्हारे ।  मिलती है वहाँ शान्ति ,  जनता ही पुकारे ॥ टेक ॥  लहानूजी मेरे बाबा !  तू कौन ? बता दे ।  किस देवताने तुझको  मोहा है ? दिखा दे ।।  कुछ तेरे करिश्मों को ,  हम भी तो निहारे ।  मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ १ ॥  गाली में तेरी रंगत ,  तेरी मार में बर है ।  किसिको प्रसाद दे तो  बस वेही पार है ॥  कितने ही बिमारों को  अच्छा बना डारे ।  मिलती है वहाँ शान्ति ०॥ २ ॥  दिखता न तेरा भेख- कोई  जोगी गुसाँई ।  पर उनसे नहीं कमती  तेरी साधुता भाई !  किस अवलियाने तन - मन  बरदान से तारे ?  मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ ३ ॥  बरखेड का गुरुदेव तेरा  इष्ट बडा था ।  जंगल में तेरा डेरा  कई साल पड़ा था ॥  तुकडघा कहे ए बाबा !  अमर कीर्ति के तारे !  मिलती है वहाँ शान्ति ० ॥ ४ ॥

संतोमें एक संत

 ( तर्ज - शिरडीमें साईनाथ बड़े संत)  संतोमें एक संत ,  गजानन भी होगये ।  अलमस्त भक्ती पाके ,  निजधाम सोगये ॥ टेक ॥  लाखोंने उन्हें देखा था ,  बेहोश प्रभूमें ।  पर्वा न उन्हींको थी ,  अच्छा ही रहूँ में ॥  जरतारी कई कपडे ,  गरीबोंको दे गये ॥ १ ॥  शेगांव धाम उनका ,  भक्तोंने बनाया जाती हजारों जनता ,  धूप दीप जलाया ॥  उनकी गरीबी और  दरिद्र दूर हो गये ॥ २ ॥  उनकी सहज समाधीका ,  भारी योग था ।  बिन कपढे रंगे उनका  अलमस्त जोग था ॥  किसको नहीं है दूर किया ,  जो भक्तीसे गये ॥ ३ ॥  ग्यानीमें जो ग्यानी थे ,  भोलेमें भोले - भाले ।  जंगल हो या मंदर ,  दोनोंसे थे निराले ॥  कौन पाये उनकी हस्ती ,  जनम जनम खोगये ॥ ४ ॥  हम ऐसेही वलियोंके  पल्लोंमें है दिये ।  तुकड्या कहे इस संतसे  कई भक्त तर गये ॥ ५ ॥

सुजनका संग ना पाया रे

 ( तर्ज- दिन बीते ० )  सुजनका संग ना पाया रे ,  जनम गया बीता ॥ टेक ॥  बचपनका यह खेल है झूठा ।  आयी जवानी तिरीया लूटा ॥  लडके बच्चों में दिल जूटा ।  सारा दिनही होगया खोटा ॥  साधुसंग , मुख रामनाम ,  मुझे क्षण ही न भाता ॥ १ ॥  धन धन करके , गये चकराये ।  सत्ताका भी मोह न जाये ॥  परनिंदा की शर्म न आये ।  क्या ऐसे जीये , मरजाये ॥  मेरे राम , हायहाय कर जावे ,  अब तो पल न सुहाता ॥ २ ॥  अब किसके संग क्या सुधरेंगे ।  बिन गुरुके को पार करेंगे ॥  नहीं तो नाहक हम भी मरेंगे ?  कहे तुकडया फिर क्या सुधरेंगे ।  सब अंग,भंग हो जाये ,  कौन संग आता ॥ ३ ॥ 

मेरे प्रिय श्याम बन्सी के बजैया

 ( तर्ज -पक्षीणी प्रभाती ० )  मेरे प्रिय श्याम बन्सी के बजैया ।  चलावे चलादे मोरी ,  अडी खडी नैया ॥टेक ॥  काम क्रोध मोह मोरे ,  नैया को छेडे ।  नीत रीत तोडे मेरी माया ॥ १ ॥  भरोसा तुम्हारा लेके , बीच नाव छोडी ।  भेद - छेद जोडी , मोरी काया ॥ २ ॥  मान प्रतिष्ठा से मोरी , अडी नाव घेरी ।  इसलिये में तो , चरणों में आया ॥३ ॥ कहे दास तुकड्या , नाम है के तेरा वह ।  गरुड को सँवारे , डार दे छाया ॥ ४ ॥ 

आग है दिल में मेरे

 ( तर्ज - हर जगह की रोशनी में  )  आग है दिल में मेरे ,  कितनी दबाऊँ आखरी ?  खाक कर देगी मुझे ,  तनको जलावेगी पुरी ॥ टेक ॥  जिन्दगी हो प्रेमकी ,  तब तो मिले फल शान्ति का :  नहि तो तडपना दुःख है ,  क्योंकर करें यह नौकरी ॥ १ ॥  कष्ट करना सह सके ,  पर गम जो मन के साथ है ।  संगम हो सच्चे काम का ,  हो देश की अरमाँ पुरी ॥ २ ॥  चाहता में दिल से तुमको ,  पल तो देखूं रंग में ।  मिट जायगी अरमाँ मेरी ,  सुनके जरासी बाँसुरी ॥ ३ ॥  भेदका परदा हटाकर ,  हे प्रभू ! मुझ में समा ।  कहत तुकडया , देर मत कर ,  बंदगी कर दे पुरी ॥ ४ ॥ 

डूब रहा है मानव धन ये

 ( तर्ज - हरिका नाम सुमर नर प्यारे ० )  डूब रहा है मानव धन ये ,  दिन - दिन कृत्रिम होकरके ।  आतताई - सा रहने लगता ,  पेट मसाला भर - भरके ! ||टेक|| अस्तव्यस्त है खाना - पीना ,  रहना , सोना , प्रवास भी ।  शान्ति कहाँसे पावे तनमें ,  प्राकृत नहिं मिलता कुछ भी ॥  इन्द्रिय लोलुपता के पीछे ,  मन भगता फिर तन भगता ।  पडता झडता डरता करता  रहता है सारी सजता ॥  क्या करता हूँ , समझ नहीं है ,  भगनेके मारे इसको ।  साथी भी वैसे ही मिलते ,  दवा- पानि लेलो - खसको ! ॥  पैसा - पैसा हुआ है सबमें ,  जैसा ब्रह्म सभीमें है ।  उससे खींचातानी होती ,  सारा काम कमी में है ॥  अतीधुन्द - सा भाग रहा है ,  जीवन करमें धर करके  आततायी - सा रहने लगता ,  पेट मसाला भर - भरके ॥ १ ॥  बिगडा जनवर , मार - मारकर  उसे ठिकाने लाना है ।  वैसी सुईयां टोच - टोचकर ,  इसका स्वास्थ्य जमाना है ।  होगा क्या नहीं होगा जाने ,  डॉक्टर- वैद्य - कम्पनियाँ |  वो तो होगया आशक इनपर  गोली ...

छोडोजी छोडो जीवन की आशा

 ( तर्ज– खोलोजी खोलो दिल )  छोडोजी छोडो जीवन की आशा ,  तभी नाम होगा || टेक ||  तोडोजी तोडो बुरी अभिलाषा ,  तभी नाम होगा होगा ।  सुख - दुख सहता बंदे ,  वही जीव जीता ,  बाबा अमर वही होगा ।  अपनेको त्यजके जो सभीको बसाता ,  वही प्रीय होगा ॥ १ ॥  किसिने न पाई इज्जत ,  बुरी राह लेके भाई ! सुनना ही होगा ।  कमा जो कमाना जग में ,  फेर पछतायेगा , जमाना कहेगा ।  जनमको निभाले , कहे दास तुकड्या ,  समझनाही होगा ॥ २ ॥

दरिद्र - भूखे को धन पाया

 ( तर्ज - हरि भजनाची रुची जयाच्या )  दरिद्र - भूखे को धन पाया ,  पागल ही हो गया  नाचने लगा होश खो गया ॥ टेक ॥  धन जिसका था , शहीद था वो ,  बडे कष्ट से लिया ।  आलसीयों के स्वाधिन किया ॥  जो धन को नहि पचा सके ,  धन जगह पर ही रह गया ।  और आपस में झगडा किया |  ( तर्ज ) यह हुआ हाल ,  सम्हली नहि जाती खुशी ।  रोते है घरके लोग जिंदगी फसी ।  अपनी ही अक्कल अपने सिर पर बसी ।  ऐसा है स्वातंत्र्य का किस्सा ,  शत्रु फेर भिड गया ।  नाचने लगा होश खो गया ॥ १ ॥  समझ चाहिये ' राष्ट्रधर्म की ,  सदा सुरक्षा करे  देश यह भूषण बनकर फिरे ॥  अनाज पानी सदा खुशाली ,  उद्योगी जन बने  स्वर्ग हो भारत काया मने ॥  ( तर्ज ) यह रहा जगह के जगह  हाल यह हुवा ।  आपस में मरने लगे द्वेष कर यहाँ ।  है कौन बड़ा किसका चलता है जुवा । धुंद हुये व्यसनों में ,  प्रायः शत्रु निकट आगया ।  नाचने लगा होश खो गया ॥ २ ॥  फिर वहि याद जगाने आया ,  अगस्त पंधरा वही ।  जहाँ स्वातंत्र्य मि...

तेरे दिल से करता तूं है

 ( तर्ज- मेरे दिल के बावरे पंछी ० )  तेरे दिल से करता तूं है ,  सुनता ही नहीं किसिका भी ।  कई बार बताया था जो ,  अरे मार्ग खुशीका भी || टेक ||  ऐसा कहाँपे सीखा ,  अपने ही दिल का करना ।  इससे बिगड रहा है ,  सारा भया जमाना ॥  दिन आये हसीका भी ॥ १ ॥  सुनना सभी की पहले , फिर सोच करके चलना ।  इन्सान वही होता  पडता न जिसे  रोना ॥  सारी खबर बता दे हो भला किसीका भी || २ || दर्याव दिलका कोई ,  हो तो बतावे तुझको |  तुकड्या कहें नहीं तो ,  करना ही है क्या किसको ।  धीरज कदम उठाले ,  तू ले ले मेरी चाबी ॥ ३ ॥