( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० ) भोग सब ये खुदीपर हैं , सोचकर राह चल भाई ? न साथी आयगा कोई , याद रख यार ! दिलमाँही ॥टेक ॥ किया था पाप वाल्मिकने , पुछा फिर जायकर घरमे कहो है कौन भोगनको ? ' अवाजी कोइकी नाई ॥ १ ॥ दुष्टपन साधकर रावण , सिताको ले गया लंका । हुआ सब नाश दश सिरको , न कोई खबर सुन पाई ॥ २॥ मचाया द्रोह कौरवने , फना करनेको पांडवको । खुदीको नाश कर पाये , प्रभूका न्याय चित लाई ॥ ३॥ न दुख दे यार ! तू किसको , अगर अपना भला चाहे । वह तुकड्यादास कहता है , सुखी होगा जिवनमाँही ॥४ ॥