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भोग सब ये खुदीपर हैं

 ( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० )  भोग सब ये खुदीपर हैं ,  सोचकर राह चल भाई ?  न साथी आयगा कोई ,  याद रख यार ! दिलमाँही ॥टेक ॥  किया था पाप वाल्मिकने ,  पुछा फिर जायकर घरमे कहो है कौन भोगनको ?  ' अवाजी कोइकी नाई ॥ १ ॥  दुष्टपन साधकर रावण ,  सिताको ले गया लंका ।  हुआ सब नाश दश सिरको ,  न कोई खबर सुन पाई  ॥ २॥  मचाया द्रोह कौरवने ,  फना करनेको पांडवको । खुदीको नाश कर पाये ,  प्रभूका न्याय चित लाई ॥ ३॥  न दुख दे यार ! तू किसको ,  अगर अपना भला चाहे ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  सुखी होगा जिवनमाँही ॥४ ॥ 

कहाँ ईश्वर पड़ा बंदे

 ( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० )  कहाँ ईश्वर पड़ा बंदे !  भटकता भौंर फिरता है ।  न देखे राहको उसकी ,  तु अपनी मौज करता है || टेक || हजारों शास्त्रको देखे ,  भजनको तालमें सीखे ।  लगाता है समाधीको ,  दबा दमको बिछरता है ||१|| कहीं तीरथको ढूँढनको ,  टहलता है पतालेश्वर ।  लगाता कानसे चंदन ,  गले माला पहरता है || २ || कहीं आसन लगाकरके ,  चढाता ध्यान योगीसा । कही मूरतको ले करके फुलोंके हार छाता है || ३ || अरे ! सबही करे तो क्या ?  न करनीको जरा देखे ।  कपट छल द्रोहसे हरदम  लगता तारी सुहाता है || ४ || लगाता दिलको विषयोंमें ,  न बंधन दे कभी उसको ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  राहबिन झूठ करता है ॥५ ॥ 

कहा करते है साधूजन

 ( तर्ज- अगर हैं ग्यानको पाना ० )  कहा करते है साधूजन  भरा तूही सभी घटमें ' ।  भजन करना किसीका फिर ,  किसी के जायकर मठमें ? ॥टेक ॥  अगर तुमही हो जलथलमें ,  सभी मंदरमें मसजिदमें ।  तो न्याराभी कहो क्या है ?  कि जिसके हम लगें पगमें ॥ १ ॥  बडा है तू , खडा है तू ,  जगा है तू तुही सोया  अखिल इस विश्वमें तेरा ,  भरा है नूर घूँघटमे || २ || तुहि राजा , प्रजा है तू ,  तु है भोगी , है रोगी तू तो किसकारणसे कोईको ,  कहूँ निच - ऊँच में झटमे  || ३ || समझता हूँ में यह आखिर ,  जो ग्यानी जानते होगे  उन्हें बंधन नही कोई ,  मरण - जीनेकाभी हठमे  || ४ || कहे तुकड्या समझना यह ,  कठिन पडता है अंधोंको । ‘  प्रभूही खेलता सारा ,  भोग - सुख दुःख - झंजट में  || ५ ||

सुधरले यार ! जिंदगानी

 ( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० )  सुधरले यार ! जिंदगानी ,  सभी गोरोंने खाई है ।  बडे डाकू हैं अंदरमें ,  जगभर सौख्य नाही है ॥ टेक ॥  बना मुखत्यार है तेरा ,  डुबाया कामने सारा ।  क्रोधकी साथ है उसको ,  पुरी नेकी जलाई है ॥ १ ॥  न कोई ग्यानको माने ,  हुआ बूढ़ा बिछाने पर  कहा करता है . ' बे ! मानो नाहक क्यों मौत आई है ? बिचारी बहिन है भक्ती ,  बडी रोती है अंदरमें ।  न सुझने दे अहं उसको ,  हटावे नम्रताई है ॥ ३ ॥  कहे तुकड्या तऱ्हा ऐसी ,  भरी है जिंदगानीमें ।  मिले बिन सद्गुरु कोई ,  जरा नहि शांति आई है ॥ ४ ॥ 

भजन कैसे बने उनसे

 ( तर्ज- अगर हैं ग्यानको पाना ० )  भजन कैसे बने उनसे ,  विषयमें जो कि लटके हैं ?  भरेंगे वेहि जमके घर ,  पडेंगे उनको झटके हैं ॥ टेक ॥  तरावट मालको खाना ,  मिला गांजा वहाँ जाना ।  लूटकर द्रव्यको लाना ,  इन्ही बातोंमें चटके हैं ॥१ ॥  पलंगपर डारके गादी ,  उसीपर धर चदर खादी ।  बने हैं इश्कके फंदी ,  खबर क्या ? फेर - फटके हैं ॥२ ॥ बडाई गाँवमें करते ,  झूठही बातको बकते ।  समयको देखकर झुकते ,  उन्हीके संग खटके हैं || ३ ||  बढाकर सिर जटा भारी ,  बगलमें तुंबडियाँ मारी ।  हमेशा देख परनारी ,  कामके पास सटके हैं | ॥ ४ ॥  कहे तुकड्या सुनो भाई !  इसे नहि संत कहलाई ।  संतके राम मन भाई ,  और सब ' पेट ' रटके हैं ॥५ ॥ 

बिना हरिके भजन कोई

 ( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० )  बिना हरिके भजन कोई ,  न प्यारा होत ईश्वरका ।  दौरते यार ! क्यों बनमें ?  चढेगा रंग सब फीका || टेक ||  करो शुद्धाचरण हरदम ,  अरू गौ - जीवनकी सेवा ।  गरीबोंकी कदर लेला ,  तो ईश्वर होयगा घरका || १ || भजो निजरूपको उसके ,  समाया है जो दुनिया में ।  लगाओ ग्यानकी तारी ,  बने फिर ला - पता डरका || २ || चलो यह राह संतों की ,  तजो अभिमानका बाना ।   लगाओ प्रेम ईश्वरसे ,  झराओ प्रेम अंदरका ॥३ ॥  मनुज - तन फेर ना आवे , यार !  अब छोड़ दे सुस्ती ।  वह तुकड्यादास कहता है ,  भजनमें प्रेम हो नरका ॥४ ॥ 

कृपा कर नाथ ! अब मुझपे

 ( तर्ज- अगर हैं ग्यानको पाना ० )  कृपा कर नाथ ! अब मुझपे ,  फँसा संसार - झंझटमें ।  बडा मुश्कील है रहना ,  न रहने दो जी ! लटपटमें || टेक || अजब जंजाल है माया ,  न थोडा भी मिले सत् - सँग ।  न प्रभुका नाम भी आवे ,  चले दिन जात खटपट में || १ || साथ तो खूब वह मिलता ,  तमासोंगीरका जगमें ।  जरा ना दम मिले उनसे ,  निकालो जान चटपट में || २ || भला - बूरा , कहीं टोटा ,  कहीं मिलजात है पैसा  झूठ - सच्चा कहाकरके ,  निभाते काल झटपट में  || ३ || वह तुकड्यादास कहता है ,  कहो कैसे तरे इनसे ? ।  न अब हमसे रहा आये ,  खिंचो गुरुदेव ! झटपटमे || ४ ||