( तर्ज - अगर हैं ग्यानको पाना ० )
बिना हरिके भजन कोई ,
न प्यारा होत ईश्वरका ।
दौरते यार ! क्यों बनमें ?
चढेगा रंग सब फीका || टेक ||
करो शुद्धाचरण हरदम ,
अरू गौ - जीवनकी सेवा ।
गरीबोंकी कदर लेला ,
तो ईश्वर होयगा घरका || १ ||
भजो निजरूपको उसके ,
समाया है जो दुनिया में ।
लगाओ ग्यानकी तारी ,
बने फिर ला - पता डरका || २ ||
चलो यह राह संतों की ,
तजो अभिमानका बाना ।
लगाओ प्रेम ईश्वरसे ,
झराओ प्रेम अंदरका ॥३ ॥
मनुज - तन फेर ना आवे , यार !
अब छोड़ दे सुस्ती ।
वह तुकड्यादास कहता है ,
भजनमें प्रेम हो नरका ॥४ ॥
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