सत्संग की हवा
( तर्ज - आओ सभी मिल जायके )
सन्तों को पूछ अपने ,
सुख दुःख की हवा ।
उनकी शरण में जाय तो ,
पायेगा वाहवा ! ॥टेक ॥
शेगांव में है संत गजानन ।
भि अवलिया ।
अपने जनम का उसने तो ,
उध्दार ही किया ॥
औरों को तारने को भी ,
देते है वे दुवा ! ॥१ ॥
मरते न कभी सन्त ,
सदा ज्ञान - ध्यानसे ।
जीते है अपनी शक्तीसे ,
और सिध्दि प्राणसे ॥
जो भक्ति करें प्रेम लगा ,
तो मिले नवौ ॥२ ॥
आशा नहीं है तेरेही सद्गुण राह की ॥
चल ! जाग ऊठ ले तू !
अमर संग की हवा | ॥३ ॥
साथी है सभी स्वारथी ,
अनुभवसे देख तू ।
सच्चे वेहि एक सन्त है ,
कुछ उनसे सीख तू ॥
तुकड्या कहे , मुझको न प्रिय ,
सन्त के सिवा ॥४ ॥
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