दीनन के हितकारी
( तर्ज : यह प्रेम सदा भरपूर रहे )
संतनकी महिमा न्यारी है ,
बलिहारी है बलिहारी है ।
ये बंद पुराण उच्चारी है ,
बलिहारी है बलिहारी है || टेक ||
प्रभुमें उनमें नहिं भेद जरा ,
बलके प्रभूसे बलकारी है ।
प्रभुसे ना कर्मकी रेख मिटे ,
सो संतोंने खुद टारी है ॥ १ ॥
कै पंगुवोंको पैर दिये ,
कै मूकोंको है दी वाणी ।
संतोंके अडभंग वाणी को ,
प्रभूने पूरी कर डारी है ॥२ ॥
ये संत गजानन ! अवलीया ,
महशूर थे सारे लोगों में ।
शेगांव में उनका ठाना है ।
उनकी परतीती न्यारी है ॥३ ॥
अधिकार उन्होंका कौन कहे ,
जो सिध्द बने जिव भावोंसे ।
तुकड्याकी ग्वाही है दिलसे ,
वो दीननके हितकारी है ॥४ ॥
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