सुखसार गजाननस्वामी !
( तर्ज - तू तो रामनाम भज तोता )
धन्य धन्य जगत परकाशी ,
जो कि तनमें बने अविनाशी ॥ टेक ||
सुखसार गजानन स्वामी
बने पूरण अंतर्यामी ।
रुप नगन , रहन है , अनामी ।
भये दृश्य स्वरुप निजधामी ,
भक्तजनकी मिटावत प्यासी ॥१ ॥
कौन महिमा उन्होंकी कहावे ।
जोक ब्रह्मादिकों से न पावे ।
कहत- कहना कहा मिट जावे ।
धन्य भाग जिन्होंको वे पावे ,
तुकड्यादास - अभिलाषी || २||
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