जिया ना सतावो
( तर्ज : दुनियाँ भाये मोहे ... )
जिया ना सताओ मेरा ,
जिया ना सताओ रे !
हरि के मिलन की मोहे आस है ,
मोहे आस है || टेक ||
इसीलिये छोडा मैने घरदार सारा ।
ध्यान धरूँ दिल में नाचूँ हरिके द्वारा ॥दुनियाँ से मनको मेरे ,
करूँ मैं उदास है ।
हरि के मिलनकी
मोहे आस है ||१ ||
दिलमें न भाये कोई ,
खान - पान प्यारा ।
नीन्द नहीं लागे ,
आँखें देखलू पियारा ॥
काहेको बुलाती दुनियाँ ,
जिसमें झूठी प्यास है ।
हरि के मिलनकी मोहे आस है ॥२ ॥
सभी भोग भोगूं
जिसमें रहुंगा अधूरा |
इधर का नं पूरा भाई ,
उधर का न पूरा ॥
अमोलिक जाये घडियाँ ,
जिसमें मेरा नाश है ।
हरि के मिलन की मोहे आस है ॥३ ॥इसलिये कहता हूँ मैं ,
हमारा प्रणाम लो
कहे दास तुकड्या ,
जिससे दोनोंका भी काम हो ।
मुझे भी दरस हो ,
मिटे सबकी प्यास है ।
हरि के मिलनकी मोहे आस है ॥४ ॥
नागपूर से अयोध्या प्रवास ; दि . ८-८-६२
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