ओ ! भाग्य निर्माता
( तर्ज : ओ निर्दयी प्रीतम ... )
ओ ! भाग्य - निर्माता ??
ग्यानके दाता , कर हमसे भी ,
जो कुछ थोडा बनता ! || टेक ||
समय नहीं अब बननेकी ,
फिरभी गरज हमें उनकी ।
बिना भाग्यके नहीं चलेगी ,
गती - विधी पूरी मनकी ॥
प्रयत्न से ही , सब लडते पर ,
सफल नहीं होता || १||
गली - गली नहिं भाग्य पडा ,
चाहे कोई लेके उडा ।
ऐसा हो तो सब बनते थे ,
भारी नेता बडा - बडा ॥
इनमें होना दोनों बाते
करनी और पूर्व गीता || २ ||
हमतो हैं कर्तव्यधारी ,
लेकिन किरपा बिन तेरी
किसकी नहीं चली थी जगमें ,
आज चले नहीं पुरी ॥
इसीलिये यह समझाना है ,
दर्शन में दो बाता || ३ ||
ग्रंथ - संग सब जगा मिले ,
पर गुरु - किरपा नहीं फुले
इसका कारण हमने पाया ,
संतन मिलते कहीं भले ॥
तुकड्यादासने यौं ही गाया ,
जहाँ मिले मैं जाता ! || ४ ||
वडसा , दि . ६.१०.६२
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