नैनन नीर बरसे
( तर्ज : ज्योति कलश छलके ... )
नैनन नीर बरसे ! || टेक ||
बिछुड गये जबसे मनमोहन ।
दिल भडके सारा ही बन - बन ॥
जी न लगे घरसे ! || १ ||
जैसी बात बनी गोपिन की ।
ग्वाल - बाल बछडे गौवन की ॥
क्यों रूठे हमसे ? ।। २ ।।
नीन्द नहीं , छाती धडकावे ।
ना जाने प्राणही उड जावे ॥
दिल कापे डरसे | ॥ ३॥
तुकड्यादास कहे , फिर आओ ।
एक बार फिर दर्श दिखाओ |
जब तन मन हरषे ! ।। ४ ।।
बम्बई से बडोदा प्रवास ,
दि . १०. ९. ६२
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