अब तो बदलो ये
भारत की शान समझलो ।
अपने जिम्मे जो आये वो
काम समझलो ! ॥ टेक ॥
आलसी न रह पाये
जीम्मेदार आदमी ।
सबको लेके चले वो ही
होगा प्यारा आदमी ।
अपना- परका देखे वो है
बेकार आदमी ।
सबके लिये मरता वो है
सरदार आदमी
जनता को फँसावे ,
हैवान समझलो ! ॥१ ॥
पंचायत राजमें वही
कामयाब है
न्यायसे ही चले देता
माकूल जुबाब है ।
ऊँचा चरित्रवाला हो
उसका ही दबाव है ।
भाई है ना साला ,
कोई मित्र है ना साब है ।
सभी मिलके रहो
तो आराम समझलो ! ॥२ ॥
हर किसकी बाणी बाजार घुमेगी ।
अनुभव की छानी दीवार बनेगी ।
सेवा की सूरत दीदार बनेगी ।
होनहार युवकों की कतार बनेगी ।
सामूहिक जीवन ही प्राण समझलो
वही धर्म होगा ,
जो सबको ईमान दे ।
वही धर्म होगा ,
जो शुद्ध खारपान दे ।
वही धर्म होगा ,
जो देशको बलिदान दे ।
वही धर्म होगा ,
जो भूखेको काम दे ।
कहे दास तुकड्या ,
निर्माण समझलो ! ॥४ ॥
वरुड ; दि .१. १०. ६२
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