समुदाय प्रार्थना ये
( तर्ज : जैसा किया है तूने , वैसा तुझे )
समुदाय प्रार्थना ये ,
गुरुदेवजी सुनीजा !
मतलब जो था हमारा ,
दिल तुमपे जाये खींचा ॥ टेक ॥
चारों दिशा हैं मन्दर ,
मैदान है गलीचा
अस्मान छत दिया है ,
कोऊ न ऊँच नीचा ॥१ ॥
तारे और चंद्र सूरज
जलती निरंजनी है ।
पूजा है सद्गुरुकी ,
मानव बने बगीचा ||२||
सब संप्रदा हैं इसके ,
फूलों के रंग न्यारे ।
मिलकर बना नगर है ,
सच प्रेम से ही सींचा ॥ ३ ॥
यह धर्म - वर्म सब हैं ,
कमरे विचारियों के !
तुकड्या कहे , सभी का ,
है एकही नतीजा ! ।। ४ ।।
सेवाश्रम - आमगाँव ;
दि . १५ - ९ -६२
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