सुधबुध गयी
( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे ... )
सुधबुध गयी मोरी श्याम से ।
खुल गये ताले अंतरंग के
लग गयी धून प्रभू - नाम से ! ॥ टेक ॥
वृन्दावन की कुंज - गली है ।
मधुबन की शृंगारवली है ॥
प्रेम लगा निज- धाम से ! ॥ १ ॥
जमुना की गहरी है धारा ।
गौओं का ग्वाला है प्यारा ॥
दर्शन पाये अराम से !
सूझे नहीं संसार , कहाँ का ?
तार चढा मोरे दिल में गम का ॥
तुकड्या यो लगा काम से ! ॥३ ॥
नाशिक , दि . ८ . ९. ६२
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