मेरी मौतने रहे
( तर्ज : जीवन में पिया तेरा )
मेरी मौतने मुझको अवाज दिया ।
अब सोना नहीं ,
चलना हैं भला ! ॥ टेक ॥
कहीं ऐसा समझकर तू न चले ,
यह धन - दौलत भी पास रहे ॥
नहिं साथ रहेगी कौपिन भी ! ,
सारा ही बदन
जल जाये ढला ! ||१||
यह सारा ही परिवार तेरा ,
जो सत्ता मत्ता से है घिरा ॥
त्यजकर ही अकेला जाना है ,
करनी के फल
पाना है भला ? ||२||
कहीं भूलके तू फँस जाये यहाँ ,
तब मार पड़ेगी अंत समय ||
तू खेंचे इधर ,जम खेंचे उधर
वह नहीं छोड़ेगा ,
जान खुला ! ||३||
इस कारण यह कहता हूँ तुझे ।
आसक्त न हो किसकी झंझट में !!
तुकड्याने सुना , यह बात सही
गुरुदेव - कृपासे
ज्ञान मिला ! ||४||
सेवाश्रम - आश्रम ;
दि . १७. ९. ६२
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