भयी - भयी मोरी अखिया
( तर्ज : छोडो छोडो मोरे सैया बावरे ... )
भई - भई मोरी अखियाँ बावरी ॥ टेक ॥
अबही सुनी संतन से बाते ।
प्रभू - दर्शन से सब तर जाते ।
हमको भी तारोना हरी ! ॥१ ॥
मानव - जन्म लिया सुनने को ।
ज्ञान नहीं थोडा भी हम को ॥
नम्र न बोले मेरी वैखरी ! ॥२ ॥
विषय भोगको मन ललचावे ।
सत्संगत करने नहीं जावे ॥
उमर होगयी है आखरी ! ॥३ ॥
कब पायेगी प्रभू अब शान्ति ?
तुकड्या कहे दुःबधा नहिं जाती ।
सुना - सुना तेरी बाँसरी !
गुरुकुंज आश्रम ; दि . १५. ९. ६२
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