ओ ! भक्ति की ज्योति ??
( तर्ज : ओ निर्दयी प्रीतम ... )
ओ ! भक्ती की ज्योति ,
मोह की मुक्ति !
दास बनाके , हमको ,
करो प्रचीती ॥ टेक ॥
हम हैं तेरी शरणांगत ,
निर्मल मनसे होनेको रत ।
अब नहीं है अभिमान बदनका ,
निश्चयसे कहते हैं मत ।
ज्यादा समय न लगने दो ,
पल - पल बीती जाती ! ॥ १ ॥
आज चढी है वृत्ति अखंड ,
कल क्या जाने होगा
षड्विकारकी झुंड बढे तब ,
होगा आपसमेंही बंड
इसीलिये करता हूँ अर्जी ,
गयी समय नहीं आती ||२||
बिना दर्शनके शान्ति नहीं ,
शान्ति बिना गयी भ्रांति नहीं ।
बिना भ्रांति गये ये मनकी ,
कभू बनेगी क्रांति नहीं ।
क्रांति बिना मन स्थीर न होता
है यह हमपर बीती ! ।।३ ।।
सुंदर अवसर यह आया ,
प्रभुने हम पर किया दया ।
पशु - पक्षीका जन्म छुडाकर ,
यह मानवका तन पाया
तुकड्यादास कहे , यह साधन ,
छोडके होगी बुरी गती ! ॥४ ॥
गोंदिया ; दि . ६-१०-६२
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