कहीं ऐसी दया भी करना
( तर्ज : तेरे दया - धरम नहि मनमें ... . )
कहीं ऐसी दया भी करना ।
कोई संड- बंड को नही देना ॥ टेक ॥
गैले- गूंगे , अंधे लंगडे ,
जिनको लखवा मारा ।
ऐसोंके जहाँ स्थान बनाये ,
जाकर दिजो सहारा ॥१ ॥
उनसे भी बनता है धंधा
तो उद्योग सिखाओ ।
बने जहांतक किसीको भाई !
मुफ्त न कोई खिलाओ ॥ २ ॥
अगर हो साधू महंत कोई ,
या पंडित हो पंडा !
धरम की सीधी राह बतावे ,
सिर्फ नही हो झंडा ॥ ३ ॥
जहाँ - वहाँ कर नमस्कार ,
सब समय न खाली गमावे । ।।
भले सुनो उपदेश देरतक ,
उसमें चुगली न होवे ॥ ४ ॥
देश बनाना ऊँचा तबतो
चरित्र - नीति सिखाओ ।
घर- घर साधू - संत घुमें ,
और तन उद्योगि लगाओ ॥ ५ ॥
इसका नाम दया करना है ,
खाली धर्म न जावे ।
तुकड्यादास कहे ऐसोंसे ,
दया देशभर होवे ॥ ६ ॥
मुर्झड फार्म ; दि. २२. ९. ६२
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