मेरे मित्र किसान सें
( तर्ज : एक रात में दो - दो चाँद ... )
मेरे मित्र किसान से बात हुई ।
सब मिलकर खेति बनायेंगे ! ॥
सब काम करे , निर्माण करे ।
फिर सब मिलकर ,
बँट खायेंगे ! ||टेक||
जन शक्ति का उपयोग लिये ।
हम धन दौलत दुगुनायेंगे ।
विश्वास करे अपने जनपर ।
इस देशका हाथ बढायेंगे ! ॥ १।।
कहि वस्त्र नहीं , ना शिक्षण है ।
कहि अन्त्र नहीं , क्या खायेंगे ? ?
यह दुःख मिटाने को सबका ।
हम मिलकर भाग्य सराहेंगे ||२||
शंका न करो दुःख पायेंगे ।
हम हैं उनका नहीं खायेंगे ।
तुकड्या कहे , सबकी कमाई के
हम सब भागी बन जायेंगे ॥३।।
नागपुर - आश्रम ;
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