मोरे हाथ पकड नाथ
( तर्ज : मोहे पनघट पे नंदलाल )
मोरे हाथ पकड नाथ ,
त्रिकुट घाट गयो रे ।
जहाँ सुन्दर थी सेजपे
निवास कियो रे ! ॥ टेक ॥
द्विदल के चक्र लगे ,
भ्रमर - गुंफासे बिलगे ।
दंभ - दर्प जाय भगे ॥
मोहनी स्वरूप प्रेम
बाँध लियोरे ।। मोरे ..|| १ ||
अनहद की बीन बजी ,
अति मधुर सुंदर थी ।
मस्त भई दिल भर थी ॥
छाई नशा घोर ,
बडा शोर भयो रे ।। मोरे ..॥२ ॥
संत समागम ही मिला ,
जीवनका फूल खिला ।
सत्गुरु से हाथ दिला ॥
तुकड्याकी प्रेम - भक्ति ,
रास भयोरे ।। मोरे ... ॥ ३॥
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा