जाने दिलको ही क्या होगया
( तर्ज : चाँद जाने कहाँ खोगया ... )
जाने दिलको ही क्या होगया ।
ऐसी गफलत में
मैंने तो आना न था || टेक ||
शाम होने लगी , दिन समाने लगा ।
प्रार्थना का समय ठीक आने लगा |
मेरा तिरछा कदम क्यों गया ?
मैंने ये वख्त ऐसा बहाना न था ।।१।।
मित्र चाहे कहें , घूमने को चलो ।
वो क्या जाने कि तुम
हाथ ही को मलो ॥
मोतिया बिन्द आँखो गया
किसकी संगत से
रंगत गमाना न था ।। २॥
अब तो ऊठो ,
चलो - प्रार्थना में चले ।
चाहे देरी भयी
तो भी होगें भले ॥
लाभ जितना भी हो , पागया ।
कहता तुकड्या ये गलती
तो होना न था ||३||
सेवाश्रम - आमगाँव ,
दि. १७. ९. ६२
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा