जब खेती नहीं कसता है
( तर्ज : दया - धरम नही मनमें ... )
जब खेती नहीं कसता है !
तब तो किसान
क्यों कहता है ? ||टेक||
तेरे घरमें जमीन होकर ,
तू गुलाम साहबका ।
खेतीमें नहिं अनाज बोता ,
क्यों करता है मनका ?? ||१||
आज है जिसकी बडी जरुरी
भारत देश पुकारे
तू तो चिवडा -सीजन बेचे
खेती कौन सुधारे? ||२||
परदेशोंमे लिखे पढे भी
खुद खेतीमें राबे
तू तो जराभि लिखना जाना ,
कहता ' आवबे - जावबे ! ' ॥ ३ ॥
सबही मिलकर सामूहिक में ,
खेति बनाओ अपनी ।
देशका बोझा तब उतरेगा ,
फिरके माला जपनी ! ॥४ ॥
घरको खेती नहिं करनी है ,
खूली कर दे सबको ।
तुकड्यादास कहे , कोई लेगा ,
क्यों जखडा है उसको ? ॥ ५ ॥
वैनगंगा में नाँव में बैठे हुए ;
दि . २२ - ९ -६२
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