हसते है कोई
( तर्ज : होटोंपे - हँसी , पलकों में . )
हसते हैं कोई , करते न शरम ।
गरिबों की रहम नहीं आती है ।
एक दिन उन पर , कभु बीत चले ।
फिर रोते ही रह जाते है ॥ टेक ॥
हैं कौन मेरे , जो साथ करें ।
नहिं मुझको नजर सिर हाथ धरें ॥
यह हो कैसे , तब तुम वैसे
गरिबोंकी रहम नहीं आती है ||१||
दुसरो को सता , अब तूहि बता ।
तेरा कौन पता , कोई देगा जता ॥
तुझे होंगी कदर , तब जाये सुधर
गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||२||
हैं खून किसीका शमदम का ।
उसको ही मजा पाये गमका ॥
जिसमें है नसा , अपने तमका ।
गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||३||
नत मस्तक है , सत् से जिनका ।
उनको ही ठिकाना है गमका ||
तुकड्या कहता , सबमें रहता ।
गरिबोंकि रहम नहीं आती है ||४||
मालेगांव , दि .७. ९. ६२
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