मनकी अटपट
( तर्ज : गेला हरी कुण्या गांवा ? )
मनकी अटपट है बनी ।
सदाही खटपट शैतानी ।।
किसीने झटपट नहीं जानी ।
कोई गुरु - ग्यानी ,
ग्यानी ने जानी !! ॥ टेक ॥
किसकी पुजा बडी भारी ,
फुलोंकी ढेर चढे सारी ।
लम्बी माला है गहरी ,
फिरते दिनभर ही जारी ।।
कोई बन - बनमें रहते हैं ,
भेखके भारी अभिमानी ।
कोई गुरु - ग्यानी ,
ग्यानी ने जानी ! ।।१ ।।
किसका लंबा है चंदन ,
किसी ने किया भस्म लेपन ।
किसीका भार बडे मन - मन ,
किसीने साधा है आसन ।
हजारों साधन करते हैं ,
होती है तोभी हैरानी ।
कोई गुरु - ग्यानी ,
ग्यानी ने जानी ! ॥२ ॥
जिसने सत्संगत साधा ,
सम्हाली इंद्रिय- मर्यादा ।
भक्ति प्रेम जिन्हे ज्यादा ,
किया नहिं किसिकी भी निंदा ॥
कहे तुकड्या वही जीते ,
समेटी जिसने शैतानी ।
कोई गुरु - ग्यानी ,
ग्यानी ने जानी ! ॥३ ॥
नागपुर से गोंदिया ,
रेल्वे प्रवास ;
दि . १ ९ - ९ -६२
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