ये दुनियाँ
( तर्ज : ये हरियाली और ये रासता ... )
ये दुनियाँ प्रभू का स्थान है ।
इस दुनियाँ में हलन - चलन जो
प्रभु का वही गुण - गान है ! ॥ टेक ॥
पर्वत - वृक्ष है बेला उनकी ।
सागर - नदियाँ शोभा उनकी ।
चाँद - सुरज है अँखियाँ उनकी ।
सन्त उनके जीवन के
प्रिय प्राण हैं ।।१ ।।
एक तरफ है असूर की शोभा ।
एक तरफ है देव औ ' रंभा ।
बीच गडा प्रकृति का खंबा ।
खेल चले , मेल चले ,
यही तो शान है ॥२।।
आते हजार हैं , जाते हजार हैं ।
रोते हजार हैं , गाते हजार हैं ।
तुकड्या कहे ,
नहीं उनका ये पार है
जो जाने , वही शाने ,
यही तो जान है ! ||३ ||
सूरत , दि . १२. ९. ६२
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