मेहमान समझकर
( तर्ज : तुम छलिया बनके आना ... )
मेहमान समझकर
तूने क्योंकर दिल भरमाया ?
तेरी बीती उमर
आगे तू सूधर!॥ टेक ॥
कहता था दुनिया जाऊँ ।
तब तो प्रभु -पद को पाऊँ ।
यह उद्धरने की काया ।
मुझ नहीं लपटेगी माया ॥
तेरी बीती ॥१ ।।
सेवा ही करुँगा सत् की । ||
सब रूप समझ भगवत् की
सिर रखूं स्वामी की छाया ।
सत् - ग्यान साथ जब लाया ॥
तेरी बीती ॥ २ ॥
सब भूला दुनियाँ देखा ।
अब घुमता झूठ सरीखा ॥
कुछ समझ तुझे नहीं आया ।
कहे तुकड्या याद दिलाया ।
तेरी बीती ॥३ ॥
अहमदाबाद ;
दि . ११ - ९ -६२
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