तुम्ही हो व्यापक
( तर्ज : तूचि कर्ता आणि करविता ... )
तुम्ही हो व्यापक सभी समाये ।
शरण तुम्हें आये ! ॥ होऽऽ ॥ टेक ॥
कौन जगा है जमीं पे खाली ?
जहाँ पे तुमने छटा न डाली ??
जब ऐसा है तब बनमाली
क्यों नहिं दर्शन हमें दिखाये ?
॥ शरण ।।१ ।।
तुम खंबो से प्रगट भये हो !
नरसिंह रुप अवतार लिये हो ।
गजेंद्र की भी अवाज सुनके
गरुड सँवारे तुम ही धाये !
॥ शरण ॥२।।
द्रुपद- सुता की लाज बचाई ,
लाखों वस्त्र पुराये शाही ॥
झूठे बेर चबे भिल्लन के
सबबिधि यहि महिमा पढ पाये !
॥ शरण ॥३ ।।
हम मतिमन्द तुम्हारे दरपे ,
बैठे हैं , निश्चय कर सरपे ||
तुकड्यादास दया करदे प्रभु
गुण - अवगुण मेरे जाय भुलाये !
॥ शरण ।।४ ।।
सेवाश्रम - आमगांव :
दि . १८ ९ ६२ -८५
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