ऐ गंगे ? -
( तर्ज : विठ्ठल सम चरण ... . )
गंगे ए ए !
तव चरण शरण मैं आऊँ ।
कइ जन्मों का कूड़ा - कचरा ॥
धोकर साफ कराऊँ || टेक ||
कितने तारे तारनहारे ।
पापी हो तो और उद्धारे ॥
भूली भटकी पडी अस्थियाँ ।
आखिर मैं भी समाऊँ ।। १॥
कितने जन को जीवन देती ।
कितने साधू - सन्त बसाती ॥
तेरे दर्शन से ही प्रीति ।
अपने मन में लाऊँ || २ ||
पर्वत फाडे कडकड तोडे ।
भागीरथ के कसको जोडे ।
हरि का द्वार सताकर छोडे ।
कैसे यह बिसराऊँ || ३ ||
गुरुकुंज में कुण्ड बनाया ।
' सर्वतीर्थ '-यह नाम धराया ।।
उसिमें भी तू शामिल है ही ।
बैठ - बैठ गुण गाऊँ ! ॥४ . ॥
तुकड्या कहे , तेरे द्वार हजारो ।
कई भक्तों को दियो किनारो ॥
मुझ-से सेवक को भी तारो ।
करीके अडी सुनाऊँ ! ॥ ५ ॥
बैतुल - प्रवास ; दि . १७-४-६२
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