तू सुन्दर है
( तर्ज : ये हरियाली और ये रासता ... )
तू सुन्दर है , या के तेरे गुण !
इसमें तूने क्या सोचा है ?
बता जरा तो तेरा मन ! ॥ टेक ॥
कोई सजाते बदन को सारे ।
तेल लगाकर मल - मल डारे ॥
कपडे पहिने भर जरतारे ।
दिल न मले , याँ ही चले ॥
क्या ये बता कैसी चलन ? ॥१ ॥
कोई बेपारी चावल बेचे ।
कंकड डाले पैसे खैचे ।
धर्मात्मा कहलाते पीछे ।
क्या ये सही बात रही ??
पायेगा क्या उसे भगवान ! ||२||
सब गरिबोंका लूटे पैसा ।
कदर नहीं रहता है ऐसा |
मानवता तो बोले वैसा ।
तुकड्या कहे , सुनते रहे ।
तुझसे अच्छे पिछडे जन ! ॥३ ॥
सूरत : दि . १२. ९. ६२
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