यही करो नाथ !
( तर्ज : मज सवे बोल रे माधवा ... )
यही करो नाथ ये दासको ।
तन न रहे ,
पर मन लो पासको ॥ टेक ॥
मन जब तुम्हरे चरण में आवे ।
तब कहीं तन भी दौर लगावे ॥
मन - विकल्प ही
करत नाशको ॥१ ।।
जब सत्संग में मन जावे ।
साधन तब भक्ती के पावे ॥
कुसंग से मन होत न बसको ॥२ ॥
जिनके मन प्रभु- सुमरण भाया ।
उनको नहिं व्यापे यह माया ॥
वहि चाखत हैं अमृत रसको ॥३ ॥
परिवर्तन हृदयों का होना ।
सत्गुरु बिन अधिकार कहीं ना ।
तुकड्या कहे ,
पूरण हो आसको ॥४ ॥
विवेक बालाघाट ;
दि . २१ - ९ -६२
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