दिया , दे दियाजी
( तर्ज : , जिया ले गयोजी मोरा , )
दिया , दे दियाजी ,
मैंने प्राण दिया ।
अब नहीं रखा कोई
पास लिया ॥ टेक ॥
मैं नहीं हूँ ; मैं नहीं हूँ ।
सब में तो रघुबर छाय गया ।
आँख में वो मेरे रोशन दिया ।
सुन्दर निहारता , चरणों में सार था ।
कुछ था , जो दिल से
निकाल किया ||१||
शान्त भया , शान्त भया ।
काम - क्रोध में का
सारा जोश गया ।
पानी मिला पानी में
तो पानी रह गया ।
जीव - शिव एक है ,
देवभक्त एक है ।
तुकड्या ने ऐसो
मन ठान लिया
नासिक ; दि . ८ - ९ -६२
तेरा कदम
( तर्ज : तुम छलियाँ बनके आना ... )
तेरा कदम न आडा जावे ।
गर तू इन्सान कहावे ।
चल चढो ले रंग ,
धर दिल संतसंग ॥ टेक ॥
कोई शराब - गांजा पीते ।
कोई चलते जेब कटाते ।
यह भी तो नर कहलावे ।
पर पशु में भेद न पावे ॥
चल चढा ले रंग ;
धर दिल संतसंग ।।१।।
कोई दूध में पानी डाले ।
कोई गहूँ में कंकड घोले ।
और धर्मवान् कहलावे ।
फिर ऐसी चाल चल जावे ॥
चल चढा ले रंग ;
धर दिल संतसंग ॥२ ।।
मन्दर में जूता चोरे !
भगवान से नजर उतारे ।
खूब टाल बजाकर गावे ।
लंबा चंदन सिर लावे ॥
चल चढा ले रंग ;
धर दिल संतसंग ॥३ ॥
ये सब जो कुछ चलता है ।
कहे तुकड्या क्या समझावे ?
वह कभू कीर्ती नहिं पावे ॥
चल चढा ले रंग ;
घर दिल संतसंग ॥४ ॥
अहमदाबाद ,
दि. ११. ९. ६२
टिप्पण्या
टिप्पणी पोस्ट करा