ऐ ग्रंथ पंथवालों ?
( तर्ज : जैसा किया है तूने , वैसा तुझे ... )
ऐ ग्रंथ - पंथवालों !
मेरा सुझाव है ये ! ।
बदला हुआ जमाना ,
धरता न पाँव है ये ! || टेक ||
शान्ती नहीं हैं उसको ,
रॉकेट - बम्ब् बनाकर ।
उडता ही जा रहा है ,
हिंसा की नाव है ये ||१ ||
कहिं भूमिकम्प होकर ,
मरते हैं प्राणि सारे ।
कइ बाढपीडितोंसे
घबडाये गाँव है ये ! ||२||
कालेबजार से भी ,
कइ लाखे फाके होते ।
डरते नहीं हैं फिरभी ,
चोरोंके साँव हैं ये ! ||३||
चारित्र भी गया है ,
जाता रहा है जो भी ।
जातीय वृत्ति को भी ,
बढके ही भाव है ये ॥४ ।।
गर इनसे बचना है तो ,
हो प्रार्थना प्रभूकी !
तुकड्या कहे सुनोजी ,
शांती की छाँव है ये ! ॥ ५ ॥
गुरुकुंज आश्रम ;
दि . १५ - ९ -६२
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