महँगी करो नहीं
( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे )
महँगी करो नहीं साथ है ।
हम भक्तों भक्त हमारे ।
यही तुम्हारी बात है ! ॥ टेक ॥
भिल्लीनीने जब तुमको पाया ।
झूठे बेर तुम्हे खिलवाया ||
किया न कुछ जप - जाप है ! ॥१ ॥
कुबजा के संग रंग गये तुम ।
रंग गये नही , संग गये तुम ।
ये कैसी खैरात है ! ||२||
बिदुरी के घर छिलके खाये ।
केले को नहीं कीमत लाये ।
गोपी भी नाच नचात है ! ॥३ ॥
योग-याग औं जप-तप करना ।
अहंकार में जाकर मरना ।।
ये नहीं हमरी जात है ! ||४||
हम हैं पागल उस सूरत के ।
कुंजन-बन की उस मूरत के ।।
तुकड्या को यही भाँत है ! ॥ ५ ॥
बम्बई , दि . ९ - ९ -६२
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