बस करो नाथ
( तर्ज : मजसवे बोलरे माधवा ... )
बस करो नाथ ! ये आपदा ।।
दरसन दो यह खोलके परदा ॥ टेक ॥
अति विरहों से मुरझायेंगे ??
तब तुमको कैसे पायेंगे ??
तुमरी नीति ऐसी नहीं सदा ।। १ ।।
जब प्रल्हादने नाम पुकारे ।
दौरे हो तुम खंबको फारे ।
गजके कारण धर ली थी गदा ॥२ ।।
द्रुपद - सुता की लाज सँवारी ।
तुमही वस्त्र पुराये मुरारी ॥
हम भुले यह वाक्य नहीं कदा ॥ ३ ॥
सब विषयनसे मन अब रूठा ।
अब चाहते तुम्हरा सितजुठा ||
तुकड्यादास को पावे सुखदा ॥४।।
गोंदिया ; दि . २१ - ९ -६२
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