सुनी , ओ सुनी जी
( तर्ज : जिया ले गयो जी मोरा . )
सुनी , ओ सुनी जी !
मैंने बाँसुरियां ।
तब से ही तो
मन मस्त भया ! || टेक ||
जाग गया , जाग गया ।
सब विषयन से भाग गया ।
रंग गया मोरा चोला नया ।
अंतर में तार है ,
बजता सितार है ।
आँखियों में छाँय गया ,
साँवरिया || १ ||
नीर बहे , नीर बहे
मन उन्मन भये ,
प्रेम दिया ॥
सब रस- अमृत पान किया |
उसकी है बाँसुरी , मेरी है खंजडी ॥
मिलजुल कर बजे झाँजरिया ॥२ ॥
याद रहे याद रहे ,
हम नहीं जुदे , सब भेद गया ।
दुही का परदा निकाल दिया ।
हम में भी ओ है , उस में भी हम हैं ।
तुकड्याने अनुभव सार किया ! ॥३ ॥
नाशिक , दि . ८-९-६२
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