गले तुलसी की माल है
( तर्ज : मेहंदी लगी मोरे हाथ रे ... )
गले तुलसी की माल है ।
भूल न जाऊँ ; इन बातों को ॥
ना करूँ काम जहाल है ! ॥ टेक ॥
इस कारण पहनी है माला ।
जल जाये इस दिल का काला ॥
होऊँ प्रभू से निहाल है !
झूठ की संगत पल नहीं भावे ।
हरदम दिल प्रभू - नाम रिझावे ।
झूठ भव जंजाल है ! ॥ २ ॥
ममता माया मोह न व्यापे ।
अंत समय कहीं काल न कोपे
तुकड्या कहे , सच हाल है ! ॥३ ॥
नाशिक : दि . ८ - ९ -६२
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