अब तो उनकी खेती है
( तर्ज : गेला हरि कुण्या गांवा ... )
अब तो उनकी खेती है ,
बढायी जीवन - शक्ती है ।
जिसने हाथों ज्योती है ।
सबकी हारी ,
किसान की बलिहारी ! ॥ टेक ॥
जिसने खेत नहीं देखा ,
उसके नाम नहीं लेखा ।
जिसने बोना नहिं सीखा ,
खेती में नामही क्यों उसका ??
करो कुछ धंधा अखत्यारी ,
गुजर तब होगी मुखत्यारी ।
सबकी हारी ,
किसान की बलहारी ! ॥१ ।।
तुमतो अकल सिखाओगे ,
अपना भत्ता पावोगे
नहिं मालिक कहलाओगे ,
अगर हल को चलाओगे ॥
चलेगी अब न साहूकारी ,
खेती होगी सहकारी
सबकी हारी ,
किसान की बलिहारी ||२||
जो अपना शेर बनायेंगे ,
वही रुजगार जिलायेंगे ।
अकेले अब दुख पायेंगे ,
न अपना जिवन सजायेंगे ।
कहे तुकड्या , पाये समझदारी ,
रहीं तेरी और मेरी ।
सबकी हारी ,
किसानकी बलिहारी ! ||३ ||
गोंदिया ; दि. २०. ९. ६२
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