मोहे लगी
( तर्ज सुरगणा जायरे तू रणा ... )
( राग देश )
मोहे लगी प्यारकी बाँसरी ! ।
बाज गयी तब
सुध - बुध हारी ! |टेक|
उन गोपिनको जैसा है साथी ।
हमपर भी वैसी ही बीती ।।
ध्यास लगी , कब पाये मुरारी ! ||१||
सुन पुरान भगतन् की बानी ।
गिरिधर सब ही अंतरयामी ॥
दौलत हैं ले गरुड सँवारी ! ||२||
हम वही आस लगा बैठे हैं ।
दरसन को आँखियाँ ऐठे हैं ।
चैन नहीं बिन पाये बिहारी ! ||३||
उस बन्सीमें प्यार भरा है ।
सुनते ही दिल मन सुधरा है ।
तुकड्यादास ने जब सुन डारी ! ||४||
मेहेंदीवाडा , चातुर्मास्यवर्ग ,
दि . २२. ९. ६२
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