( तर्ज - अगर है ग्यानको पाना ० )
दिवाने ! कुछ नही जगमें ,
मजा किसके भरोसे है ? ।
स्वप्नका खेल है सारा ,
पूँछले यार ! ' जी ' से है ॥ टेक ॥
बनाकर नांव पत्थरकी ,
खुशीसे बैठकर उसमें ।
कहो कैसे उतर जावे ?
तन्हा यह भी तो ऐसी है ॥१ ॥
फुटानेपर करी पूँजी ,
बने फिर साहुगर सबके ।
झपट देता है जमराजा ,
छोडकर जाय जी से है ॥२ ॥
बडे राजा अमिर उमराव ,
इनका क्या ठिकाना है ?
रहेगा ठाट ना हरदम ,
रहेंगे कौन कैसे है । ? ॥ ३॥
वो तुकड्यादास कहता है ,
करो कुछ संगती ऐसी ।
कि अपना रूप मिल जावे ,
बने हम एक जैसे है ॥ ४॥
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