क्या कहते हो !
( तर्ज : जो तो सांगे ज्याला त्याला ... )
क्या कहते हो बात पुरानी ?
तुम नहीं जानी
हम नहीं जानी ॥ टेक ॥
रावण को दस सीर बनाये ।
उसने तो कैलास उठाये ॥
वो तो बड़े तपी कहलाये
फेर किया क्यों यह बैमानी ? ।।१।।
कुंभकर्ण जबक सोया था ।
नाक में उसके गधा गया था ।
जब समुन्द में स्नान किया था ॥
कम्मर तकही था सब पानी ! ॥२ ॥
शुर्पणखा इतनी खंबी थी ।
सोला योजन से लंबी थी ।
उसकी कुटीया भी कितनी थी ।
वारे यह अचरच की बानी ! ॥ ३ ॥
इसका सत्य पछाने कोई- ।
तो बोलेगा बातें सवाई ||
हमी सरीखे थें वह भाई ।
क्यों पूजो उनको मनमानी ? ॥४ ॥
इससे सिद्ध यही होता है ।
भक्त कभी राक्षस बनता है ।
जब वो सावध नहीं रहता है ।
तुकड्या कहे ,
रखो याद कहानी ! ।।५ ।।
किन्ही ; दि . २.१०. ६२
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