जय दुर्गे !
( तर्ज : भाग्य कुणाला लाभे ऐसे ... )
जय दुर्गे ! महारानी भवानी !!
तुम्हरि पूजा मोरे मन मानी ! ॥ टेक ॥
अति सुन्दर सिंहासन तेरो ।
मंगल पुष्प-लतासे बहरो ॥
नव दीपोंकी निरांजनी है - ।
धूप सुगंध जले असमानी ! ॥
जय दुर्गे ! ॥१ ॥
दैत्य दलन को त्रिशुल उठाये
हात खड.ग तरवार बनाये
खप्पर कर में , अग्नि दहकता
सिरमें मरवट चमक निशानी ! ॥
जय दुर्गे ! || २ ||
सिंह सवारी अती भयानक ।
निर्भय सत्य चरित्र प्रदर्शक
सद्भाविक को पाये भक्तिसे
स्वर्ग सुख देती निर्वाणी ! ॥
जय दुर्गे ! ॥ ३ ॥
सब देवनपर दृष्टि तुम्हारी ।
शूर -बिरों को वरद् तुम्हारी
शिव महाराणा साक्ष इसे हैं
तुकड्यादास स्वरूप पछानी ! ॥
जय दुर्गे ! ॥४ ॥
वर्धा ; दि . ३.१०. ६२
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