( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
बने पागल फकीरीमे,
न हमको फिक्र दुनियाकी
लगे हैं धुनमें साँईके ,
मजा लगती है धुनिया की || टेक ||
दिलाई मस्ति संताने ,
चढाकर ग्यानकी बूटी ।
न पर्वा मौतकी है अब ,
न आशा और जीनेकी ॥१ ॥
जो होता है वही अच्छा ,
जो मिलता है वही अच्छा
जो बचता है वही अच्छा ,
भरी यह आसना जी की || २ ||
रहे सर्दी रहे गर्मी ,
रहे जंगल या हो बस्ती ।
फिकर कुछ भी नही आवे ,
कँबल तानी तनैयाकी ॥३ ॥
वह तुकड्यादास कहता है ,
पता उसका करो कोई ।
जो अपनेमें रँगा हरदम ,
करो नित संगती वाँकी ॥४ ॥
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