तर्ज - नैनोंके भीतर नीला , बीच ० )
प्यारे ! तज भ्रम यह अपना ,
जग ये सपना जानले ॥टेक ॥
जबतलक ग्यान नहि होवे ,
तबतलक दुःखको पावे ।
सत्संगत मिल जावे ,
सुख तब पावे मानले ॥१ ॥
हम पिंजरेको सच माने ,
तोतेको नहि पहिचाने ' ।
ये भरममे हुये दिवाने ,
भूल निशाने मानले ॥ २ ॥
मुझकोभि पता नहि मेरा ,
यह पाप है भरा हमारा ।
इनसे नहि भूल अपारा ,
अपनी करणी ध्यान ले ॥३ ॥
तुकड्या सच पहिचानो ,
झूठेसे बचो दिवानो !
यह ग्यान गुरू से बानो ,
प्रभुही अपना मानले ॥ ४ ॥
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