देखी कीर्ति
( तर्ज : मोहे पनघटपे नंदलाल ... )
देखि कीर्ति माल
लेके हाथ घूम रही है ।
अबतलक के ब्याहि नहीं ,
बात सही है ! ॥ टेक ॥
मूर्ख उसे चाहते हैं ,
पर न वो उसे ब्याहे ।
पलट पलट घुम जाये ।
सज्जनको चाहती ,
उसे चाह नहीं है । देखि ... ।।१।।
साधु उसे दूर करे ,
भोंदू ही पीछे परे ।
वो न उसकी बाह रे ।।
इसही तन्हा वो कभी भी
ब्याहि नहीं है ! देखि ॥ २ ॥
चाहे नहीं सज्जन भी ,
पर न उसे छोडे कभी ।
चाहे जाय जीवन भी ॥
तुकड्या कहे ,
बिन माँगे भेजी गयी है ! ॥
देखि ।। ३ ।।
पिंपलगाँव ; ( आंध्र . )
दि . १० - ९ -६२
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