( तर्ज - भले वेदांत पछाने हो ० )
दिवाने ! खोल नयन भाई !
नजरभर धर लेना साँई || टेक ||
बहुत दिनोंसे विषय चला है ,
क्या है उसमाँही ?
समझ गया है अनुभवियोंको ,
सुख उसमें नाही || १ ||
तन मंदिरमें खोज कियाकर ,
चित्त स्थिरवाई ।
सद्गुरु - ध्यान लखे साक्षीसे ,
शांति उसे पाई || २ ||
लगा आँख और लखो गगनमों ,
तारे चमकाई ।
कंठ ओठ विन जाप चला है ,
संगममें भाई ! ॥३ ॥
कहता तुकड्या सत्-संगतसे ,
नीरंजन गाई
अनुभव लेना आकर जगमें ,
सार्थक कमवाई || ४ ||
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