अप्र( तर्ज लीजो लीजो खवरिया ० )
मोरे नैनोंमें रामजीके नूर खडे
जब लंकामें जायकेवह
जंग लडे || टेक ||
जब दैत्य चुराकर
सिता बनवार ले गया
खूली हुई थी झोपरी
और कोई ना रह्या
सिता सतियोंकेभी
यों है हाल बडे || १ ||
भक्त रामकेहि
अधिक राम - नामसे ।
शक्ति है उनमें वडी ,
बस राम - प्रेमसे ।
सोही धन्य हैं ,
जिनके भाव जड़ ॥२ ॥
हनुमान मारके उड्डान
सेतु बँध लिया ।
दैत्य भार ठार कर ,
अँगूठी दे सिया ।
सीता - चरणों मे
जायके प्रेम बढ़ || ३ ||
नाश करके रावणकी
शक्तियाँ सभी ।
रामने उडाये शीर
थे दशों तभी ।
कहता तुकड्या ,
विभीषण के भाग जुड़े ॥ ४ ॥
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