गुरु किरपा का अर्थ यही है ,
मेरा मैं जानूं !
लगी - प्रभूसे लगन सही है ,
मेरा मैं जानूं !! ॥ टेक ॥
दिलमें जिसके त्याग भरा है ,
जरा न भाँता छलबल है ।
जीवन है संयमी हमेशा ,
अन्दर बाहर निर्मल है ।
जो आवे उसके सँग प्रीति ,
अपनी आत्मा समझाने ।
सद् विचार लेना और देना ,
सदा नम्रता पहिचाने ॥
द्रोह- दुश्मनी दूर गयी है ,
मेरा मैं जानू
लगी प्रभूसे लगन सही है ,
मेरा मैं जानूं !! || १ ||
सत् - संगत की निशा हमेशा ,
प्रभू - नाम की मस्ती है
सत्चित् आनंद रूप समझकर ,
बढे जिन्होंकी किस्ती है
सुख - दुख दोनों में है समता ,
राज मिले या धुली मिले
सबका भला हमेशा हो ,
यह बात सदा मुंहसे निकले
अपना- परका भेंद नहीं है ,
मेरा मैं जानू ।
लगी प्रभूसे लगन सही है ,
मेरा मैं जानूं !! || २ ||
यह संसार लिला राघव की ,
समझ के खेला करते हैं
यहाँ वहाँ क्या सभी विश्व में
कर संचार बिचरते हैं ।
जरा न डर है जनम - मरनका ,
सत्गुरु नामसे तरते है
पल - पल बीता जात मस्तीमें ,
अपनी धुन में रहते हैं ।
यही जिन्हों की राह सही है ,
मेरा मैं जानूं
लगी प्रभूसे लगन सही है ,
मेरा मैं जानूं !! ॥३ ॥
कई जनम के सुकृत जिन के ,
उनको यह व्रत मिलता है ।
एक दिनके हाथ पैर जोडे
मिलती नहीं सफलता है ।
निश्चय जिनका अटल रहा है ,
पायी जिन्हें सफलता है
तुकड्यादास कहे गुरु - किरपा
उनके मथ्ये फलता है ।
मन मुखियों को मिले नहीं ,
यह मेरा मैं जानूं
लगी प्रभू से लगन सही हैं ,
मेरा जानूं !! || ४ ||
नागपूर , ( वृंदावन - प्रवास ) ;
दि . ७-११-६२
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