( वजन भीतर बोला , दो ० )
प्यारे ! तू साक्षी तनका
मनका जनका ध्यान कर || धृ. ||
ये भोग योग संजोगा
प्रारब्ध कर्म को लागा
तू निरालंब नि:संगा
अपने रँगमें ध्यान धर || १ ||
प्रकृती कृतीमें आई ,
यह माया मोह बढाई ।
तेरेमें भेद न भाई
गुरुकि गवाही ध्यान धर || २ ||
मत मायामों फस जाना ,
तू जानले अपना बाना ।
कहे तुकड्या प्रेम - दिवाना ,
आतम म्याना ध्यान कर || ३ ||
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