( तर्ज - मुझे क्या काम दुनियासे ० )
नर ! खो दिया उमर फिर ,
सुख शांति कैसि पावे ?
दम भूलमें गमाया ,
फिरके मजा न आवे ॥ टेक ॥
था बालपन खिलौना ,
ना थी फिकर जरासी ।
विद्याबिना गमाया ,
अबके न बक्त आवे ।। १ ।।
ज्वानी थी शौर्यशाली ,
विषयोंमें वह गमाली ।
जोरूमें बक्त खाली ,
बस दे दिया गमावे ॥२ ॥
थी बुजरुगी मिलाई ,
बच्चोंमें दिल लगाई ।
पैसा नजरमें भाई ,
बस योंहि हाल खोवे || ३ ||
आया बखत बुढापा ,
तनका हुआ है खोपा ।
तुकड्या कहे सुधर ले ,
भज राम , बक्त जावे ॥४ ॥
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